दक्षाध्वरध्वंसनकार्यदक्ष
मद्दक्षनेत्रस्थितसूर्यरूप |
कटाक्षदृष्ट्या मनुजप्रसाद
मन्नेत्ररोगं शमय त्रिनेत्र ||
वामाकृते शुभ्रशशाङ्कमौले
मद्वामनेत्रस्थितचन्द्ररूप |
सहस्रनेत्राद्यमरप्रपूज्य
मन्नेत्ररोगं शमय त्रिनेत्र ||
सर्वज्ञानिन् सर्वनेत्रप्रकाश
मज्ज्ञानाक्षिक्षेत्रजाग्निस्वरूप |
भक्तस्याश्रुं स्वाश्रुवन्मन्यमान
मज्ज्ञानाक्षिं हे शिवोन्मीलयाऽऽशु ||
नेत्रात्तोयप्रपातं शमय शमय भो दूरदृष्टिं द्विदृष्टिं
रात्र्यन्धत्वाख्यरोगं शमय शमय भो चक्षुषोऽस्पष्टदृष्टिम् |
वर्णान्धत्वाल्पदृष्टी शमय शमय भो नेत्ररक्तत्वरोगं
मन्नेत्रालस्यरोगं शमय शमय भो हे त्रिनेत्रेश शम्भो ||
दुर्गा कवच
श्रीनारद उवाच। भगवन् सर्वधर्मज्ञ सर्वज्ञानविशारद। ब्र....
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भुवने सदोदितं हरं गिरिशं नितान्तमङ्गलम्। शिवदं भुजङ्गम....
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ॐ मुञ्च पक डबगशागच्छ बालिके ठठ।....
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