Special - Saraswati Homa during Navaratri - 10, October

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द्वादश ज्योतिर्लिंग भुजंग स्तोत्र

सुशान्तं नितान्तं गुणातीतरूपं
शरण्यं प्रभुं सर्वलोकाधिनाथम्।
उमाजानिमव्यक्तरूपं स्वयंभुं
भजे सोमनाथं च सौराष्ट्रदेश।।१।।


सुराणां वरेण्यं सदाचारमूलं
पशूनामधीशं सुकोदण्डहस्तम्।
शिवं पार्वतीशं सुराराध्यमूर्तिं
भजे विश्वनाथं च काशीप्रदेशे।।२।।


स्वभक्तैकवन्द्यं सुरं सौम्यरूपं
विशालं महासर्पमालं सुशीलम्।
सुखाधारभूतं विभुं भूतनाथं
महाकालदेवं भजेऽवन्तिकायाम्।।३।।


अचिन्त्यं ललाटाक्षमक्षोभ्यरूपं
सुरं जाह्नवीधारिणं नीलकण्ठम्।
जगत्कारणं मन्त्ररूपं त्रिनेत्रं
भजे त्र्यम्बकेशं सदा पञ्चवट्याम्।।४।।


भवं सिद्धिदातारमर्कप्रभावं
सुखासक्तमूर्तिं चिदाकाशसंस्थम्।
विशामीश्वरं वामदेवं गिरीशं
भजे ह्यर्जुनं मल्लिकापूर्वमग्र्यम्।।५।।


अनिन्द्यं महाशास्त्रवेदान्तवेद्यं
जगत्पालकं सर्ववेदस्वरूपम्।
जगद्व्यषपिनं वेदसारं महेशं
भजेशं प्रभुं शम्भुमोङ्काररूपम्।।६।।


परं व्योमकेशं जगद्बीजभूतं
मुनीनां मनोगेहसंस्थं महान्तम्।
समग्रप्रजापालनं गौरिकेशं
भजे वैद्यनाथं परल्यामजस्रम्।।७।।


ग्रहस्वामिनं गानविद्यानुरक्तं
सुरद्वेषिदस्युं विधीन्द्रादिवन्द्यम्।
सुखासीनमेकं कुरङ्गं धरन्तं
महाराष्ट्रदेशे भजे शङ्कराख्यम्।।८।।


सुरेज्यं प्रसन्नं प्रपन्नार्तिनिघ्नं
सुभास्वन्तमेकं सुधारश्मिचूडम्।
समस्तेन्द्रियप्रेरकं पुण्यमूर्तिं
भजे रामनाथं धनुष्कोटितीरे।।९।।


क्रतुध्वंसिनं लोककल्याणहेतुं
धरन्तं त्रिशूलं करेण त्रिनेत्रम्।
शशाङ्कोष्णरश्म्यग्निनेत्रं कृपालुं
भजे नागनाथं वने दारुकाख्ये।।१०।।


सुदीक्षाप्रदं मन्त्रपूज्यं मुनीशं
मनीषिप्रियं मोक्षदातारमीशम्।
प्रपन्नार्तिहन्तारमब्जावतंसं
भजेऽहं हिमाद्रौ सुकेदारनाथम्।।११।।


शिवं स्थावराणां पतिं देवदेवं
स्वभक्तैकरक्तं विमुक्तिप्रदं च।
पशूनां प्रभुं व्याघ्रचर्माम्बरं तं
महाराष्ट्रराज्ये भजे धिष्ण्यदेवम्।।१२।।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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