कैवल्यमूर्तिं योगासनस्थं
कारुण्यपूर्णं कार्तस्वराभम्|
बिल्वादिपत्रैरभ्यर्चिताङ्गं
देवं भजेऽहं बालेन्दुमौलिम्|
गन्धर्वयक्षैः सिद्धैरुदारै-
र्देवैर्मनुष्यैः संपूज्यरूपम्|
सर्वेन्द्रियेशं सर्वार्तिनाशं
देवं भजेऽहं योगेशमार्यम्|
भस्मार्च्यलिङ्गं कण्ठेभुजङ्गं
नृत्यादितुष्टं निर्मोहरूपम्|
भक्तैरनल्पैः संसेविगात्रं
देवं भजेऽहं नित्यं शिवाख्यम्|
भर्गं गिरीशं भूतेशमुग्रं
नन्दीशमाद्यं पञ्चाननं च|
त्र्यक्षं कृपालुं शर्वं जटालं
देवं भजेऽहं शम्भुं महेशम्|
सप्त नदी पुण्यपद्म स्तोत्र
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