गरुडगमन तव चरणकमलमिह मनसि लसतु मम नित्यम्।
मम तापमपाकुरु देव।
मम पापमपाकुरु देव।
जलजनयन विधिनमुचिहरणमुख विबुधविनुतपदपद्म।
मम तापमपाकुरु देव।
मम पापमपाकुरु देव।
भुजगशयन भव मदनजनक मम जननमरणभयहारी।
मम तापमपाकुरु देव।
मम पापमपाकुरु देव।
शङ्खचक्रधर दुष्टदैत्यहर सर्वलोकशरण।
मम तापमपाकुरु देव।
मम पापमपाकुरु देव।
अगणितगुणगण अशरणशरणद विदलितसुररिपुजाल।
मम तापमपाकुरु देव।
मम पापमपाकुरु देव।
भक्तवर्यमिह भूरिकरुणया पाहि भारतीतीर्थम्।
मम तापमपाकुरु देव।
मम पापमपाकुरु देव।
चंडी कवच
ॐ मार्कण्डेय उवाच। यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृ....
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