श्रीवेङ्कटाद्रिधामा भूमा भूमाप्रियः कृपासीमा।
निरवधिकनित्यमहिमा भवतु जयी प्रणतदर्शितप्रेमा।
जय जनता विमलीकृतिसफलीकृतसकलमङ्गलाकार।
विजयी भव विजयी भव विजयी भव वेङ्कटाचलाधीश।
कनीयमन्दहसितं कञ्चन कन्दर्पकोटिलावण्यम्।
पश्येयमञ्जनाद्रौ पुंसां पूर्वतनपुण्यपरिपाकम्।
मरतकमेचकरुचिना मदनाज्ञागन्धिमध्यहृदयेन।
वृषशैलमौलिसुहृदा महसा केनापि वासितं ज्ञेयम्।
पत्यै नमो वृषाद्रेः करयुगपरिकर्मशङ्खचक्राय।
इतरकरकमलयुगलीदर्शितकटिबन्धदानमुद्राय।
साम्राज्यपिशुनमकुटीसुघटललाटात् सुमङ्गला पाङ्गात्।
स्मितरुचिफुल्लकपोलादपरो न परोऽस्ति वेङ्कटाद्रीशात्।
सर्वाभरणविभूषितदिव्यावयवस्य वेङ्कटाद्रिपतेः।
पल्लवपुष्पविभूषितकल्पतरोश्चापि का भिदा दृष्टा।
लक्ष्मीललितपदाम्बुजलाक्षारसरञ्जितायतोरस्के।
श्रीवेङ्कटाद्रिनाथे नाथे मम नित्यमर्पितो भारः।
आर्यावृत्तसमेता सप्तविभक्तिर्वृषाद्रिनाथस्य।
वादीन्द्रभीकृदाख्यैरार्यै रचिता जयत्वियं सततम्।
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