किं ज्योतिस्तवभानुमानहनि मे रात्रौ प्रदीपादिकं
स्यादेवं रविदीपदर्शनविधौ किं ज्योतिराख्याहि मे।
चक्षुस्तस्य निमीलनादिसमये किं धीर्धियो दर्शने
किं तत्राहमतो भवान्परमकं ज्योतिस्तदस्मि प्रभो।।
लक्ष्मी विभक्ति वैभव स्तोत्र
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