हनूमन्नञ्जनासूनो प्रातःकालः प्रवर्तते |
उत्तिष्ठ करुणामूर्ते भक्तानां मङ्गलं कुरु |
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ पिङ्गाक्ष उत्तिष्ठ कपिनायक |
उत्तिष्ठ रामदूत त्वं कुरु त्रैलोक्यमङ्गलम् |
हन्मन्दिरे तव विभाति रघूत्तमोऽपि
सीतायुतो नृपवरः सहलक्ष्मणोऽथ |
तं पश्य शीघ्रमतिनिर्मलदेह भूमन्
उत्तिष्ठ देव हनुमन् तव सुप्रभातम् |
दुःखान्धकाररविरस्यभिवादये त्वां
त्वत्पादसंस्थितरजःकणतां च याचे |
श्रीरामभक्त तव भक्त अहं वदामि
देवाञ्जनेय नितरां तव सुप्रभातम् |
देव प्रसीद करुणाकर दीनबन्धो
भक्तार्तिभञ्जन विदां वर देवदेव |
रुद्रावतार महनीय महातपस्विन्
देवाञ्जनेय भगवंस्तव सुप्रभातम् |
तव सुप्रभातममरेन्द्रवन्दित
प्लवगोत्तमेश शरणागताश्रय |
भवतु प्रसीद भगवन् दयानिधे
जनकात्मजात्ययविनाशकारण |
भृतं शैलमुख्यं च सञ्जीवनाख्यं
यशस्विन् प्रभो लक्ष्मणप्राणदातः |
त्वया भार्यमेतत् त्रिलोकं समस्तं
हनूमन् तवेदं प्रभो सुप्रभातम् |
सुप्रभातं तवाऽस्त्वाञ्जनेय प्रभो
केसरीनन्दनाम्भोधिसन्तारण |
यक्षगन्धर्वभूतादिसंवन्दित
प्रज्वलत्सूर्यशोभ प्रणम्येश्वर |
आरोग्यकर्त्रे भयनाशकाय
रक्षःकुलध्वंसकृते पराय |
पार्थध्वजायेष्टफलप्रदाय
श्रीरामदूताय च सुप्रभातम् |
शक्तिप्रदात्रे नतपापहर्त्रे
शाखामृगायाम्बुजलोचनाय |
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मकाय
दिव्याञ्जनेयाय च सुप्रभातम् |
भक्तापदुद्धारणतत्पराय
वेदोक्ततत्त्वामृतदर्शकाय|
रक्षःकुलेशानमदापहाय
वातात्मजाताय च सुप्रभातम् |
आञ्जनेय नमस्तुभ्यं सुप्रभातपुरःसरम् |
मां रक्षं मज्जनान् रक्ष भुवनं रक्ष सर्वदा |
सुप्रभातस्तुतिं चैनां यः पठेत् प्रत्यहं नरः |
प्रभाते लभते पुण्यं भुक्तिं मुक्तिं मनोरथान् |
एक श्लोकी भागवत
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