नवग्रह करावलम्ब स्तोत्र

ज्योतीश देव भुवनत्रय मूलशक्ते
गोनाथभासुर सुरादिभिरीद्यमान।
नॄणांश्च वीर्यवरदायक आदिदेव
आदित्य वेद्य मम देहि करावलम्बम्।
नक्षत्रनाथ सुमनोहर शीतलांशो
श्रीभार्गवीप्रियसहोदर श्वेतमूर्ते।
क्षीराब्धिजात रजनीकर चारुशील
श्रीमच्छशाङ्क मम देहि करावलम्बम्।
रुद्रात्मजात बुधपूजित रौद्रमूर्ते
ब्रह्मण्य मंगल धरात्मज बुद्धिशालिन्।
रोगार्तिहार ऋणमोचक बुद्धिदायिन्
श्रीभूमिजात मम देहि करावलम्बम्।
सोमात्मजात सुरसेवित सौम्यमूर्ते
नारायणप्रिय मनोहर दिव्यकीर्ते।
धीपाटवप्रद सुपण्डित चारुभाषिन्
श्रीसौम्यदेव मम देहि करावलम्बम्।
वेदान्तज्ञान श्रुतिवाच्य विभासितात्मन्
ब्रह्मादि वन्दित गुरो सुर सेविताङ्घ्रे।
योगीश ब्रह्मगुणभूषित विश्वयोने
वागीश देव मम देहि करावलम्बम्।
उल्हासदायक कवे भृगुवंशजात
लक्ष्मीसहोदर कलात्मक भाग्यदायिन्।
कामादिरागकर दैत्यगुरो सुशील
श्रीशुक्रदेव मम देहि करावलम्बम्।
शुद्धात्मज्ञानपरिशोभित कालरूप
छायासुनन्दन यमाग्रज क्रूरचेष्ट।
कष्टाद्यनिष्टकर धीवर मन्दगामिन्
मार्तण्डजात मम देहि करावलम्बम्।
मार्तण्डपूर्ण शशिमर्दक रौद्रवेश
सर्पाधिनाथ सुरभीकर दैत्यजन्म।
गोमेधिकाभरणभासित भक्तिदायिन्
श्रीराहुदेव मम देहि करावलम्बम्।
आदित्यसोमपरिपीडक चित्रवर्ण
हे सिंहिकातनय वीरभुजङ्गनाथ।
मन्दस्य मुख्यसख धीवर मुक्तिदायिन्
श्रीकेतु देव मम देहि करावलम्बम्।
मार्तण्डचन्द्रकुजसौम्यबृहस्पतीनां
शुक्रस्य भास्करसुतस्य च राहुमूर्तेः।
केतोश्च यः पठति भूरि करावलम्ब
स्तोत्रं स यातु सकलांश्च मनोरथारान्।

 

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