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दिवाकर पंचक स्तोत्र

अतुल्यवीर्यंमुग्रतेजसं सुरं
सुकान्तिमिन्द्रियप्रदं सुकान्तिदम्।
कृपारसैक- पूर्णमादिरूपिणं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
इनं महीपतिं च नित्यसंस्तुतं
कलासुवर्णभूषणं रथस्थितम्।
अचिन्त्यमात्मरूपिणं ग्रहाश्रयं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
उषोदयं वसुप्रदं सुवर्चसं
विदिक्प्रकाशकं कविं कृपाकरम्।
सुशान्तमूर्तिमूर्ध्वगं जगज्ज्वलं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
ऋषिप्रपूजितं वरं वियच्चरं
परं प्रभुं सरोरुहस्य वल्लभम्।
समस्तभूमिपं च तारकापतिं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
ग्रहाधिपं गुणान्वितं च निर्जरं
सुखप्रदं शुभाशयं भयापहम्।
हिरण्यगर्भमुत्तमं च भास्करं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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Ram Ram -Aashish

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