ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।।
ओंकार का उच्चार करते हुए और मेरा स्मरण करते हुए जो अपने देह का त्याग करेगा, वह सर्वोच्च सद्गति को पाएगा।
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।11.36।।
भगवान श्रीकृष्ण का कीर्तन जगत में आनंद फैलानेवाला और दुष्ट शक्तियों को भगानेवाला है।
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।13.14।।
भगवान के हर तरफ हाथ, पैर, मुख, नेत्र, और कान होते है। वे सर्वत्र व्याप्त हैं।
कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।।
मैं उन भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करता हूं जो सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियन्ता, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, सबके आधार, सबके पोषक, सूर्य के समान कान्तिवाले और अज्ञान से परे हैं।
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।
जिसने उस पीपल के वृक्ष को जाना है जिसके मूल ऊपर की ओर (परमात्मा) हैंं और शाखाएं यह संसार है, वेद मंत्र जिसके पत्ते हैं, वह परमार्थ को जान लिया है।
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।
सबके हृदय में अन्तर्यामी बनकर मैं ही निवास करता हूं। ज्ञान, स्मरण शक्ति, और चिंतन शक्ति मैं ही हूं। वेदों द्वारा मैं ही जाना जाता हूं। वेदों के ज्ञाता और वेदान्त का प्रतिपादक मैं ही हूं।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।
मेरा अटल स्मरण करनेवाले, पूजन करनेवाले, नमस्कार करनेवाले मेरे प्रिय भक्त मुझे ही पाएंगे।
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