भारतस्थे दयाशीले हिमालयमहीध्रजे|
वेदवर्णितदिव्याङ्गे सिन्धो मां पाहि पावने|
नमो दुःखार्तिहारिण्यै स्नातपापविनाशिनि|
वन्द्यपादे नदीश्रेष्ठे सिन्धो मां पाहि पावने|
पुण्यवर्धिनि देवेशि स्वर्गसौख्यफलप्रदे|
रत्नगर्भे सदा देवि सिन्धो मां पाहि पावने|
कलौ मलौघसंहारे पञ्चपातकनाशिनि|
मुनिस्नाते महेशानि सिन्धो मां पाहि पावने|
अहो तव जलं दिव्यममृतेन समं शुभे|
तस्मिन् स्नातान् सुरैस्तुल्यान् पाहि सिन्धो जनान् सदा|
सिन्धुनद्याः स्तुतिं चैनां यो नरो विधिवत् पठेत्|
सिन्धुस्नानफलं प्राप्नोत्यायुरारोग्यमेव च|
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