पार्वती पंचक स्तोत्र

पार्वती पंचक स्तोत्र

विनोदमोदमोदिता दयोदयोज्ज्वलान्तरा
निशुम्भशुम्भदम्भदारणे सुदारुणाऽरुणा।
अखण्डगण्डदण्डमुण्ड- मण्डलीविमण्डिता
प्रचण्डचण्डरश्मिरश्मि- राशिशोभिता शिवा।
अमन्दनन्दिनन्दिनी धराधरेन्द्रनन्दिनी
प्रतीर्णशीर्णतारिणी सदार्यकार्यकारिणी।
तदन्धकान्तकान्तक- प्रियेशकान्तकान्तका
मुरारिकामचारिकाम- मारिधारिणी शिवा।
अशेषवेषशून्यदेश- भर्तृकेशशोभिता
गणेशदेवतेशशेष- निर्निमेषवीक्षिता।
जितस्वशिञ्जिताऽलि- कुञ्जपुञ्जमञ्जुगुञ्जिता
समस्तमस्तकस्थिता निरस्तकामकस्तवा।
ससम्भ्रमं भ्रमं भ्रमं भ्रमन्ति मूढमानवा
मुधाऽबुधाः सुधां विहाय धावमानमानसाः।
अधीनदीनहीनवारि- हीनमीनजीवना
ददातु शंप्रदाऽनिशं वशंवदार्थमाशिषम्।
विलोललोचनाञ्चि- तोचितैश्चिता सदा गुणै-
रपास्यदास्यमेवमास्य- हास्यलास्यकारिणी।
निराश्रयाऽऽश्रयाश्रयेश्वरी सदा वरीयसी
करोतु शं शिवाऽनिशं हि शङ्कराङ्कशोभिनी।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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