महालक्ष्मी कवच

अस्य श्रीमहालक्ष्मीकवचमन्त्रस्य।
ब्रह्मा-ऋषिः। गायत्री छन्दः।
महालक्ष्मीर्देवता।
महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।
इन्द्र उवाच।
समस्तकवचानां तु तेजस्विकवचोत्तमम्।
आत्मरक्षणमारोग्यं सत्यं त्वं ब्रूहि गीष्पते।
श्रीगुरुरुवाच।
महालक्ष्म्यास्तु कवचं प्रवक्ष्यामि समासतः।
चतुर्दशसु लोकेषु रहस्यं ब्रह्मणोदितम्।
ब्रह्मोवाच।
शिरो मे विष्णुपत्नी च ललाटममृतोद्भवा।
चक्षुषी सुविशालाक्षी श्रवणे सागराम्बुजा।
घ्राणं पातु वरारोहा जिह्वामाम्नायरूपिणी।
मुखं पातु महालक्ष्मीः कण्ठं वैकुण्ठवासिनी।
स्कन्धौ मे जानकी पातु भुजौ भार्गवनन्दिनी।
बाहू द्वौ द्रविणी पातु करौ हरिवराङ्गना।
वक्षः पातु च श्रीर्देवी हृदयं हरिसुन्दरी।
कुक्षिं च वैष्णवी पातु नाभिं भुवनमातृका।
कटिं च पातु वाराही सक्थिनी देवदेवता।
ऊरू नारायणी पातु जानुनी चन्द्रसोदरी।
इन्दिरा पातु जंघे मे पादौ भक्तनमस्कृता।
नखान् तेजस्विनी पातु सर्वाङ्गं करूणामयी।
ब्रह्मणा लोकरक्षार्थं निर्मितं कवचं श्रियः।
ये पठन्ति महात्मानस्ते च धन्या जगत्त्रये।
कवचेनावृताङ्गनां जनानां जयदा सदा।
मातेव सर्वसुखदा भव त्वममरेश्वरी।
भूयः सिद्धिमवाप्नोति पूर्वोक्तं ब्रह्मणा स्वयम्।
लक्ष्मीर्हरिप्रिया पद्मा एतन्नामत्रयं स्मरन्।
नामत्रयमिदं जप्त्वा स याति परमां श्रियम्।
यः पठेत् स च धर्मात्मा सर्वान्कामानवाप्नुयात्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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