वज्रादपि कठोराणि

वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि |
लोकोत्तराणां चेतांसि को हि विज्ञातुमर्हति ||

 

महान व्यक्ति के मन को कौन जान सकता है? जहाँ पर कठोरता के साथ व्यवहार करना होगा वहां पर वे देवेन्द्र के वज्रायुध से भी ज्यादा कठोर बन जाएंगे | और जहाँ पर सरलता के साथ व्यवहार करना होगा वहां पर वे फूल से भी ज्यादा कोमल बन जाएंगे |

 

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