पाठविधि - साधक स्नान करके पवित्र हो आसन-शुद्धिकी क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसनपर बैठे; साथमें शुद्ध जल, पूजनसामग्री और श्रीदुर्गासप्तशतीकी पुस्तक रखे। पुस्तकको अपने सामने काष्ठ आदिके शुद्ध आसनपर विराजमान कर दे। ललाटमें अपनी रुचिके अनुसार भस्म, चन्दन अथवा रोली लगा ले, शिखा बाँध ले; फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धिके लिये चार बार आचमन करे । उस समय निम्नाङ्कित चार मन्त्रोंको क्रमशः पढ़े
१-यह विधि यहाँ संक्षिप्त रूपसे दी जाती है। नवरात्र आदि विशेष अवसरोंपर तथा शतचण्डी आदि अनुष्ठानोंमें विस्तृत विधिका उपयोग किया जाता है। उसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, ६४ योगिनी, ५० क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओंकी वैदिक विधिसे पूजा होती है। अखण्ड दीपकी व्यवस्था की जाती है। देवीप्रतिमाकी अङ्गन्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधिके साथ विधिवत् पूजा की जाती है। नवदुर्गापजा. ज्योतिःपूजा, वटुक-गणेशादिसहित कुमारीपूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबन्धन, पुण्याहवाचन, मङ्गलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन, मन्त्र-स्नान आदि, आसनशद्धि, प्राणायाम, भतशद्धि, प्राणप्रतिष्ठा, अन्तर्मातकान्यास, बहिर्मातकान्यास. सष्टिन्यास. स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोढान्यास, विलोमन्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषार्घ्य, ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा । ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥ ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ।। तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनोंको प्रणाम करे: फिर 'पवित्रे स्थो वैष्णव्यौः' इत्यादि मन्त्रसे कशकी पवित्री धारण करके हाथमें लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नाङ्कित रूपसे संकल्प करे___ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्ध श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावतैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामाङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ सकलशास्त्रश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकाम: अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकशर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्वविधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुःपुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्ष
क्षेत्रकीलन, मन्त्रपूजा, विविध मुद्राविधि, आवरणपूजा एवं प्रधानपूजा आदिका शास्त्रीय पद्धतिके अनुसार अनुष्ठान होता है। इस प्रकार विस्तृत विधिसे पूजा करनेकी इच्छावाले भक्तोंको अन्यान्य पूजा-पद्धतियोंकी सहायतासे भगवतीकी आराधना करके पाठ आरम्भ करना चाहिये।
चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठवेदतन्त्रोक्तरात्रिसूक्तपाठदेव्यथर्वशीर्षपाठन्यासविधिसहितनवार्णजपसप्तशतीन्यासध्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च 'मार्कण्डेय उवाच ।। सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः ।' इत्याद्यारभ्य 'सावर्णिभविता मनुः' इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये। __ इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवीका ध्यान करते हुए पञ्चोपचारकी विधिसे पुस्तककी पूजा करे, योनिमुद्राका प्रदर्शन करके भगवतीको प्रणाम करे, फिर मूल नवार्णमन्त्रसे पीठ आदिमें आधारशक्तिकी स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तकको विराजमान करे। २ इसके बाद शापोद्धार३ करना चाहिये। इसके अनेक प्रकार हैं। 'ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्री चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा'-इस मन्त्रका आ अन्तमें सात बार जप करे। यह शापोद्धार मन्त्र कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्रका जप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्तमें इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है- 'ॐ श्रीं क्रीं ह्रीं
१-पुस्तक-पूजाका मन्त्र
ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥
(वाराहीतन्त्र तथा चिदम्बरसंहिता) २-ध्यात्वा देवीं पञ्चपूजां कृत्वा योन्या प्रणम्य च।
आधार स्थाप्य मूलेन स्थापयेत्तत्र पुस्तकम्॥ ३-'सप्तशती-सर्वस्व'के उपासना-क्रममें पहले शापोद्धार करके बादमें पडङसहित पाठ करनेका निर्णय किया गया है, अतः कवच आदि पाठके पहले ही शापोद्धार कर लेना चाहिये। कात्यायनी-तन्त्रमें शापोद्धार तथा उत्कीलनका और ही प्रकार बतलाया गया है-'अन्त्याद्यार्कविरुद्रत्रिदिगब्ध्यड्रेष्विभर्तवः ।

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