मनुष्य के बार बार इस भूमि में जन्म लेने का उद्देश्य है मोक्ष को पाकर भगवान के शरण में चले जाना। यह ही हर आत्मा का अंतिम लक्ष्य माना जाता है।
जनन-मरण चक्र से मुक्त होकर भगवान के शरण में प्राप्त होने के लिए एक चीज अत्यावश्यक है। उसका नाम है ईश्वर का अनुग्रह। इसी अनुग्रह के प्राप्त होने को कहते है 'शक्तिपात'।
यह शक्तिपात कब और कैसे होगा इस विषय पर विचार करें तो इस के लिए कुछ प्रकार बताए गए हैं।
पहला प्रकार है ज्ञान को उदय होना। यह संसार तो अज्ञान से उदित हुआ है। जब यह संसार मिथ्या है परब्रह्मस्वरूपी ईश्वर ही सत्य है, इस बात को मनुष्य स्पष्टतया जानकर सभी प्रकार के सन्देहों का उत्तर पा लेता है तो ज्ञान के द्वारा अज्ञान का नाश हो जाता है।
इस प्रकार अज्ञान का नाश होकर ज्ञान की प्राप्ति होने पर ईश्वर का अनुग्रह मिलता है।
दूसरा प्रकार का नाम है कर्मसाम्य। हमारे अच्छे कर्मों का अच्छा फल और बुरे कर्मों का बुरा फल हम भोगते हैं। जैसे हम फल भोगते हैं वैसे ही वह कर्म क्षीण होने लगता है। ऐसे जब दो विरुद्ध कर्म या बहुत से विरुद्ध कर्म अपने आप क्षीण होकर अपने फल न दें तो उस को कर्मसाम्य कहते है। ऐसे कर्मसाम्य होने पर भी शक्तिपात होता है।
तीसरा प्रकार है मलपाक। जब अपने किए हुए सभी कर्मों के फल का नाश होता है तो ईश्वर का अनुग्रह अपने आप प्राप्त हो जाएगा। कर्म दो प्रकार के होते हैं। धर्मात्मक कर्म और अधर्मात्मक कर्म। जो अच्छे उद्देश्य से या अच्छाई के लक्ष्य से किया जाता है वह धर्मात्मक कर्म है। जो बुरे उद्देश्य से या बुराई के लक्ष्य से किया जाता है वह अधर्मात्मक कर्म है। इन कर्मों का नाश या तो कर्मसाम्य से होगा या उन के फल को भोगने से होगा। ऐसे कर्म के नष्ट होने पर मलपाक से शक्तिपात होता है।
चौथा प्रकार है अद्वैतदृष्टि का प्रकट होना। परमात्मा स्वरूपी भगवान और जीवात्मा स्वरूपी मैं - एक ही हैं - इस ज्ञान के प्राप्त होने पर भी शक्तिपात होता है। वेदों और शास्त्रों का तत्त्व यह ही है। अध्ययन व स्वाध्याय करते करते मनुष्य इस तत्व को एहसास करता है और वह ईश्वर को जानकर ईश्वर के अनुग्रह को प्राप्त करता है।
पर इन सब प्रकारों से शक्तिपात होने से पहले एक और चीज मुख्य है। वह है ईश्वर की इच्छा। ईश्वर की इच्छा के बिना शक्तिपात का होना असंभव है। तो ईश्वर से प्रार्थना करने से शक्तिपात का होना ही सब के सरल प्रकार होता है।

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