यद्धितं तव भक्तानामस्माकं नृहरे हरे।
तदाशु कार्यं कार्यज्ञ प्रलयार्कायुतप्रभ।
रणत्सठोग्रभ्रुकुटीकटोग्रकुटिलेक्षण।
नृपञ्चास्यज्वलज्ज्वालोज्ज्वलास्यारीन् हरे हर।
उन्नद्धकर्णविन्यासविकृताननभीषण।
गतदूषण मे शत्रून् हरे नरहरे हर।
हरे शिखिशिखोद्भास्वदुरःक्रूरनखोत्कर।
अरीन् संहर दंष्ट्रोग्रस्फुरज्जिह्व नृसिंह मे।
जठरस्थजगज्जालकरकोट्युद्यतायुध।
कटिकल्पतटित्कल्पवसनारीन् हरे हर।
रक्षोध्यक्षबृहद्वक्षोरूक्षकुक्षिविदारण।
नरहर्यक्ष मे शत्रुकक्षपक्षं हरे दह।
विधिमारुतशर्वेन्द्रपूर्वगीर्वाणपुङ्गवैः।
सदा नताङ्घ्रिद्वन्द्वारीन् नरसिंह हरे हर।
भयङ्करोर्वलङ्कारभयहुङ्कारगर्जित।
हरे नरहरे शत्रून् मम संहर संहर।
एक श्लोकी भागवत
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