इस प्रवचन से जानिए मां शक्ति की महिमा के बारे में

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आपकी वेबसाइट बहुत ही विशिष्ट और ज्ञानवर्धक है। 🌞 -आरव मिश्रा

वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

गुरुजी की शास्त्रों पर अधिकारिकता उल्लेखनीय है, धन्यवाद 🌟 -Tanya Sharma

वेदधारा समाज की बहुत बड़ी सेवा कर रही है 🌈 -वन्दना शर्मा

वेदधारा का कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है 🙏 -आकृति जैन

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मंगल चण्डिका स्तोत्र किसके बारे में है?

मंगल चण्डिका मां दुर्गा का एक स्वरूप है। सबसे पहले महादेव ने मंगल चण्डिका की पूजा की थी, त्रिपुर के युद्ध के समय। देवी त्रिपुर दहन में भगवान की शक्ति बन गई। यह देवी हमेशा १६ वर्ष की होती है और उनका रंग सफेद चंपा के फूल जैसा है। जिनकी कुंडली में मंगल ग्रह की पीडा हो वे विशेष रूप से मंगल चण्डिकाकी पूजा कर सकते हैं।

What is Utsadana practiced in the context of the 64 Arts?

Utsadana involves healing or cleansing a person with perfumes.

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पुराणों के आख्यान सूत्र रूप में कहां मिलते हैं?

अंग्रेज़ी में एक शब्द है ‌ acid test,अम्लीय परीक्षण, साख निर्धारण। पुराने ज़माने में सोने की शुद्धता को जांचने इसे किया करते थे। इस जांच में सफल हो गया मतलब सोना शुद्ध है। सनातन धर्म में हर कोई सिद्धान्त को कई ऐसे अम्लीय परीक्षणों ....

अंग्रेज़ी में एक शब्द है ‌ acid test,अम्लीय परीक्षण, साख निर्धारण।
पुराने ज़माने में सोने की शुद्धता को जांचने इसे किया करते थे।
इस जांच में सफल हो गया मतलब सोना शुद्ध है।
सनातन धर्म में हर कोई सिद्धान्त को कई ऐसे अम्लीय परीक्षणों का सामना करना पडता है।
मीमांसकों द्वारा, न्यायशास्त्रियों द्वारा, वेदान्तियों द्वारा, यहां तक कि व्याकरण वाले भी आकर कहते हैं; यह सही नही है।
इतनी गहराई है सनातन धर्म में।
तब जाकर उस सिद्धान्त को स्वीकार किया जाता है, मान्यता प्राप्त होती है।
कहीं से दो पन्ना पढ लिया और कहते हो मूर्ति पूजा नही है, मन्दिर नही है।
हर सिद्धान्त को बुद्धिपूर्वक, युक्तिपूर्वक विचार करके ही निर्धारण किया गया है।
सन्मार्ग से चलनेवाले हमारे ऋषि, मुनि, आचार्य, सन्त, और महात्मा लोगों ने दृष्टान्तों द्वारा इनको दृढ भी किया है।
सारे पुराण यही कहते हैं कि ब्रह्मा में सृष्टि करने की शक्ति, विष्णु मे पालन करने की शक्ति, महादेव में संहार करने की शक्ति, सूर्य में प्रकाश करने की शक्ति, अग्नि में जलाने की शक्ति, वायु मे चलने की शक्ति; ये सब स्वाभाविक हैं।
एक आद्या शक्ति ही इन अलग दिखनेवाली शक्तियों के रूप में सब में व्याप्त हैं।
इस शक्ति के अभाव में इनमें से कोई भी अपने अपने कार्य करने मे समर्थ नहीं रहते।
शिवोऽपि शवतां याति कुण्डलिन्या विवर्जितः॥
अगर कुण्डलिनी शक्ति नहीं हैं तो योगिराज महादेव भी शव बन जाएंगे शिव से।
ब्रह्मा से लेकर केवल तृण तक इस शक्ति के ‌अभाव में तुच्छ और निर्मूल्य बन जाते हैं।
इस शक्ति के बिना आदमी न चल पाएगा, न भोजन कर पाएगा, कोई व्यवहार न कर पाएगा।
वेदान्ती लोग इस शक्ति को ही ब्रह्म कहते हैं।
इस तथ्य के ऊपर बार बार चिंतन करें।
बुखार से पीडित व्यक्ति को बिस्तर से उठना भी मुश्किल रहता है।
समझो तब भी उसके शरीर में शक्ति है; बस थोडी कम हुई है।
जब वह शक्ति पूर्ण रूप से शरीर से निकल जाती है तो वह शरीर लाश बन जाता है।
तृण में से जब यह शक्ति निकल जाती है तो वह सूख जाता है और थोडे समय में मिट्टी में मिल जाता है।
विष्णु मे जो सात्विकी शक्ति है, वह यही है।
ब्रह्मा में जो राजसी शक्ति हे, वह यही है।
शिव मे जो तामसी शक्ति है, वह यही है।
यही शक्ति जगत की सृष्टि करती है, पालन करती हे और संहार करती है।
इसके ऊपर बार बार चिंतन करें।
सारे देवता भी अपने अपने कार्य को इस शक्ति के माध्यम से ही करते हैं।
जिनके मन में कुछ भी अभिलाषा है, वे इस शक्ति के सगुण रूप की उपासना करते हैं।
जिनके मन मे कोई अभिलाषा नही हे, वे इस शक्ति के निर्गुण रूप की उपासना करते हैं।
धर्म की स्वामिनी, अर्थ की स्वामिनी , काम की स्वामिनी और मोक्ष की स्वामिनी, ये सब यही शक्ति है।
अज्ञानी लोग इस तत्व को जान नहीं पाते।
कुछ विद्वान ऐसे हैं जो इस तत्व को जानते हैं तब भी दूसरों को गडबडा देते है।
कुछ विद्वान ऐसे हैं, वे जानते है इस तत्व को लेकिन अपनी पेट भरने की त्वरा मे कलि के प्रभाव से पाखण्डी बन जाते हें और असत्य बातों का प्रचार करते हैं।
अन्य युगों में ऐसा नही होता है।
केवल कलियुग मे ऐसे धर्म उत्पन्न होते हैं जो वेद पर आधारित नहीं हैं।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनों भी तप करते हैं, ध्यान भी करते हैं और यज्ञ भी करते हैं।
किसकी?
किसको मनमे रखते हुए?
उस महामाया देवी की।
सब शास्त्र कहते हैं ,सभी सच्चे विद्वान कहते हैं, देवी मां सदा सेवनीय है।
सूत जी कहते है: कृष्णद्वैपायन व्यास जी के मुख से मैं ने यह रहस्य सुना है।
उनको नारद जी ने यह सुनाया।
नारद जी को उनके पिता ब्रह्मा ने सुनाया।
और ब्रह्मा जी को भगवान विष्णु ने।
इसलिये बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी इधर उधर न भटकें।
मन को दृढ रखकर देवी मां की उपासना करें।
शक्ति के बिना इस जगत में कुछ भी नहीं हो सकता।
इस सत्य को जानकर माता रानी के चरण कमलों में श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने आपको समर्पित करें।
उनकी सेवा करें उनकी उपासना करें और उनकी परम कृपा का पात्र बनें।

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देवी भागवत

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