श्रीमद्भागवत का तीसरा श्लोक - निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम्। पिबत भागवातं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः॥ निगम का अर्थ है वेद। निगम्यते ज्ञायते अनेनेति निगमः। वेदों के द्वारा सब कुछ जाना ज....
श्रीमद्भागवत का तीसरा श्लोक -
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम्।
पिबत भागवातं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः॥
निगम का अर्थ है वेद।
निगम्यते ज्ञायते अनेनेति निगमः।
वेदों के द्वारा सब कुछ जाना जा सकता है।
सिर्फ जानना ही नहीं, सब कुछ पाया जा सकता है।
स्वास्थ्य , धन - संपत्ति, सुख - शांति, ऐसे लौकिक विषयों को पाने वेद में कर्म काण्ड है जो संहिता पर आधारित है।
ज्ञान को पाने वेद में ज्ञान काण्ड है - ब्राह्मण ग्रन्थ और उपनिषद।
अच्छे अच्छे लोकों को पाने जैसे स्वर्गलोक सत्यलोक,
वेद में उपासना काण्ड है - आरण्यक।
अच्छे लोकों को पाना इसका अर्थ है अभिज्ञता का बढना
अभिज्ञता के स्तर का और ऊंचा होना।
इसलिए कहा गया है कि वेद कल्पवृक्ष है।
जो मांगो वह मिल जाता है।
तो फिर भागवत क्या है?
वृक्ष का सबसे मुख्य भाग क्या है?
आम का पेड क्यों लगाते हैं?
आम पाने।
नारियल का पेड क्यों लगाते हैं?
नारियल पाने।
फल ही वृक्ष का सबसे मुख्य भाग है।
वेद रूपी वृक्ष का फल है भागवत।
वह भी कैसा फल?
फल अच्छे से पक जाने पर अपने आप नीचे गिरता है।
ऐसा फल।
जो पूर्ण रूप से पका हुआ हो।
भगवान जब व्यास जी के रूप में अवतार लेकर धरती पर आये तो साथ में इस फल को भी लेकर आये।
अगर हमें कुछ बहुत ही स्वादिष्ठ चीज मिल जाये तो क्या करेंगे?
बेटों को या बेटियों को देंगे।
व्यास जी ने भी ठीक वही किया।
यह फल शुकदेव को दे दिया।
पर खाने जैसे नहीं।
पीने जैसे।
खाने से ज्यादा मजा रस को पीने से आता है।
यह फल द्रवरूपी है।
क्योंकि यह रस से भरा हुआ है।
जैसे कविता में रस है।
दिलचस्प कहानी में रस है।
नाटक में रस है।
किसी अभिनेता के चेहरे पर रस है, नवरस।
भागवत रसीला है।
प्रेम रस से भरा हुआ है।
भगवान का प्रेम भगवान के प्रति प्रेम।
शुकदेव ने इसे पिया।
पिया तो उनके हर इंद्रिय से प्रेम रस प्रवाहित होने लगा।
जिसे देखो उन्हें भगवान का प्रेम ही दिखाई दिया।
जिसे सुनो उन्हें भगवान का प्रेम ही सुनाई दिया।
हर तरफ भगवान का प्रेम ही प्रेम।
शुकदेव को पता चला कि भगवान का परमार्थ स्वरूप प्रेम है जो रसीला और मीठा है।
अगर कोई प्रेम करने लायक हो तो सिर्फ भगवान।
प्रेम के ये सारे प्रवाह शुकदेव के हृदय मे जमा होकर
उनके मुँह से भागवत के रूप में निकला तो
भागवत और मीठा बन गया, और रसीला बन गया,
और स्वादिष्ठ बन गया।
पर भागवत के रस का आनन्द लेने एक बार नहीं बार बार सुनना होगा।
हर बार नयी अनुभूति होगी।
भावुकता के साथ सुनना पडेगा।
भगवान के प्रति प्रेम, भक्ति भाव को अपनाकर सुनना पडेगा।
कोई टीवी न्यूज सुनने जैसा नहीं।
भावुकता के साथ सुनना पडेगा।
भागवत रस का आनन्द लेना है तो बुद्धि और आस्था के साथ साथ भावुकता का भी होना जरूरी है।
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