इस प्रवचन से जानिए- १. कैसे अध्यात्म में हडबडी करना ठीक नहीं है २. अच्छे कर्म से कैसे शुद्धता मिलती है

61.7K

Comments

t8Gwf

आजकल ध्यान के ऊपर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। बहुत हड़बड़ी है यह, इतनी हड़बड़ी तुम्हें कही नहीं ले जाएगा। मनुष्य के शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रिय हैं तो पांच कर्मेन्द्रिय भी हैं। कर्म किये बिना अनुभव नहीं मिलता। अनुभव के ....

आजकल ध्यान के ऊपर बहुत ध्यान दिया जा रहा है।
बहुत हड़बड़ी है यह, इतनी हड़बड़ी तुम्हें कही नहीं ले जाएगा।
मनुष्य के शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रिय हैं तो पांच कर्मेन्द्रिय भी हैं।
कर्म किये बिना अनुभव नहीं मिलता।
अनुभव के बिना जो ज्ञान मिलता है वह अदृढ रहता है।
सत्संगों से प्रवचनों से जो ज्ञान मिलता है वह केवल तुम्हारी आंखें खोल सकता है।
उसके ऊपर काम करना पडेगा।
वह केवल बीज है, उस को गाडना पडेगा, उसको पानी देना पड़ेगा।
जिसका कर्म शुद्ध और निर्मल हो गया हो वह कर्म को पीछे छोड़ सकता है।
जिसने भी कर्म को अच्छे से जान लिया हो, वह कर्म को छोड सकता है।
कर्म करने से शुद्ध होता है।
नदी किनारे बैठकर सोचने से शरीर स्वच्छ नहीं होगा।
उतरके डुबकी लगाना पड़ेगा।
लोहे के सामने बैठकर कल्पना करने से वह तलवार नहीं बनेगा।
उसको गर्म करके हथौडा मारकर पानी में डुबाने से, वह भी बार बार, तब जाकर वह तलवार बनता है।
केवल मनन, केवल ज्ञान योग, उसके लिये है जो अध्यात्म में बहुत आगे पहुंच चुका है।
नवीन विद्यार्थी के लिए नहीं।
आजकल अध्यात्म में आगे बढ़ने की व्यग्रता से लोग कर्म को छोड़कर ध्यान में बैठ जाते हैं।
मार्गदर्शन भी ऐसे ही मिल जाता है उनको।
जगत मिथ्या है, माया है, ध्यान करो, ज्ञान पाओ, समाधि में जाओ।
कितने दिन भूखे रह सकते हो?
कितने दिन प्यासे रह सकते हो?
जगत कहाँ से मिथ्या बन गयी?
सच्चाई से पलायन नहीं कर सकते|
उसके बीच रहकर ही उसे जानो।
पहले कर्म को शुद्ध करो, बाद में उससे बाहर निकलो।
पहले अपने कर्म को शुद्ध करो, ज्ञान अपने आप आ जाएगा।
कर्म जो है एक चोर की तरह है।
उसे पहचानना पड़ेगा।
उसके मुंह पर बोलना पड़ेगा कि मैं तुम्हें पहचान चुका हूँ।
तब वह तुम्हारा पीछा छोड़ेगा।
इसके लिए अनुभव चाहिए।
अनुभव कर्म करने से ही मिलता है।
कर्म से दूर भागने से अनुभव नहीं मिलेगा।
नादान बच्चा जिसको अनुभव नहीं है, वह चोर को नहीं पहचान पाएगा।
इसलिए, कर्म करो, अच्छा कर्म करो, बुरे कर्म को पहचानो।
अनुभव पाओ, उसके बाद ध्यान समाधि की ओर ध्यान दो।
तब जाकर सफलता मिलेगी।
शुरू से ही आँख बंद करके ध्यान में बैठोगे तो कुछ भी मिलने वाला नहीं है।
यह तो केवल एक सनक है।
तुम्हें अध्यात्म में दृढ़ता चाहिए तो धीरे धीरे और क्रम से जाओ।
महात्माओं की तापसों की कथाएं सुनकर ज्यादा उत्तेजित होने से सफलता नहीं मिलेगी।
वे अपने कर्म कर चुके थे, कर्म को जान चुके थे।
बाजार के बारे में पिक्चर देखने से बाजार की गतिविधियों के बारे में पता नहीं चलेगा।
बाजार में उतरना पड़ेगा।
खरीदना पड़ेगा, बेचना पड़ेगा।
तब जाकर अनुभव मिलता है।
अनुभव के बिना यदि कोई ज्ञान है तुम्हारे पास तो वह ही मिथ्या है।
ध्यान में बैठोगे तो आज्ञा चक्र में नीला प्रकाश दिखाई देगा।
आज्ञा चक्र क्या कोई चौराहे का ट्रैफिक सिग्नल है के लाल हरा पीला नीला बत्ती दिखाई देगा?
वह भी १५ दिनों का एडवांसड कोर्स कर के, वह भी डिस्काउंट पाकर।
दो को ले आओ तुम्हारा मुफ्त में हो जाएगा।
ये सब सनातन धर्म नही है।
सनातन धर्म में धर्म है, अर्थ है ( अर्थ यानी लेन देन ), काम है ( काम यानि इच्छा, इच्छा है तो उसे पाने का प्रयास ) और अंत में मोक्ष है।
यही सिखाता हे सनातन धर्म हमें।
१५ दिन का कोर्स करने से बैकुंठ प्राप्ति नहीं होती।
अपने शुभ-अशुभ कर्मों का फल निर्धारित है, उसे अवश्य भोगना पडेगा।
देवता भी इस नियम के बाहर नहीं है।
कालक्रम के अनुसार हर प्राणी सुख और दुख भोगता है।
यह काल का नियम है।
भगवान शंकर ने ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया, इन्द्र भी स्वर्ग से बाहर निकाले गए, और अब भगावान विष्णु के साथ भी यह घटना घटी है।
जब देवताओं को भी दुख भोगना पडता है तो कौन दुख से हमेशा के लिये बच पायेगा संसार में रहते हुये?
आप लोग शोक और व्याकुलता छोड़कर देवी महामाया भगवती के चरणों का सहारा लीजिए, वह आप को मार्ग दिखाएगी।
इस बात को सुनकर सारे देवता लोग मिलकर देवी की स्तुति पाठ करने लगे।

Hindi Topics

Hindi Topics

देवी भागवत

Click on any topic to open

Please wait while the audio list loads..

Copyright © 2024 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |