इस प्रवचन से जानिए- भगवान ने हयग्रीव के रूप में अवतार क्यों और कैसे लिया
भगवान का सिर कटने का एक और कारण बताया माता ने। हयग्रीव नामक एक दानव था। सरस्वती नदी के किनारे उसने बडी घोर तपस्या की। भोजन समेत समस्त सुख भोगों को त्याग कर, इन्द्रियों को अपने वश में रखकर, ह्रीं मंत्र का जप करके उसने घोर तपस्....
भगवान का सिर कटने का एक और कारण बताया माता ने।
हयग्रीव नामक एक दानव था।
सरस्वती नदी के किनारे उसने बडी घोर तपस्या की।
भोजन समेत समस्त सुख भोगों को त्याग कर, इन्द्रियों को अपने वश में रखकर, ह्रीं मंत्र का जप करके उसने घोर तपस्या की।
वह ध्यान करता था देवी की तामसी शक्ति पर।
उसने तप किया एक हजार वर्षों तक।
देवी उसी तामसिक रूप में उसके सामने प्रकट हुई और हयग्रीव से वर माँगने के लिये उन्होंने कहा।
दानव ने कहा: मेरी मृत्यु कभी न हो ऐसा वर दीजिए।
किसी से भी मेरी हार न हो।
देवी बोली: ऐसा नहीं हो सकता।
जन्म लिया है तो मरना पड़ेगा कभी न कभी।
इस नियम का उल्लंघन नही हो सकता।
कुछ और मांगना है तो माँग।
दानव ने कहा: हयग्रीव की मृत्यु होना है तो हयग्रीव से ही हो।
माता बोली: ठीक है , ऐसा ही होगा तुम्हें, हयग्रीव को हयग्रीव ही मार पाएगा, निश्चिंत हो जाओ।
वही हयग्रीव अब सारे ऋषि मुनियों को पीड़ा दे रहा है।
उसके द्वारा वैदिक धर्म को हानि हो रही है।
उसे मारने एक अन्य हयग्रीव चाहिए।
अब त्वष्टा नामक देव एक घोडे के सर को भगवान के धड के साथ जोड़ देगा और भगवान बन जाएंगे हयग्रीव।
उसके बाद हयग्रीव रूपी भगवान विष्णु हयग्रीव नामक दानव का संहार करेंगे।
देवताओं द्वारा आवेदन किये जाने पर त्वष्टा ने अपने खड्ग से एक सुन्दर घोडे के सिर काटकर भगवा के धड से जोड़ दिया।
और देवी भगवती की कृपा से भगवान वापस जीवित हो उठे।
उन्होंने हयग्रीव का वध किया।
यह कथा बड़ा पवित्र है।
दुष्ट दानव को मारने भगवान ने अपनी मृत्यु का नाटक रचा।
अद्भुत है यह घटना।
जो भी इस कथा को सुनेगा ,वह समस्त पापों से मुक्त हो जायेगा।
जगत के पालन के लिये भगवान क्या क्या करते हैं देखो।
कोई सरल काम नहीं है जगत का पालन।
दस हजार साल किसी दानव के साथ युद्ध करना, उसके बाद अपने ही सिर को कटवाना, घोडे के सिर को अपने शरीर के ऊपर लगवाना।
स्वयं हयग्रीव बनकर हयग्रीव नामक दानव को मारना।
पर इन सबके पीछे महामाया भगवती की ही प्रेरणा है।
माता का पावन चरित्र है यह।
इसे पढने वाला या सुनने वाला, समस्त संपत्तियों का स्वामी बन जायेगा।
महामाया भगवती कैसे कर्मों को ग्रथित कर देती है देखो- दानव ने वर माँगा तो उसे मना नहीं कर सकते क्यों कि वह उसके तप का फल है, देना ही पड़ेगा, उसका अधिकार है।
पहले उसने कुछ असाध्य माँगा था, उसे मना कर दी माता ने।
पर जो साध्य है वह मांगा और नहीं दिया तो तपस्या के ऊपर से श्रद्धा उड जाएगी, विश्वास उड जाएगा।
और वह दानव वर पाकर कंटक बन गया।
अब उसे मारना है।
वह भगवान को, बिना कारण हसाकर लक्ष्मी जी को कुपित करके, लक्ष्मी जी के शरीर में तामसिक रूप में समाविष्ट होकर उनके द्वारा भगवान के सिर कट जाये एसे शाप दिलाकर, भगवान को घोडे के सिर वाला हयग्रीव बनाकर, उसी दानव का संहार कराया माता ने।
इसे माया की लीला नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?
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