किसी जमाने में एक धर्म परायण राजा रहा करता था। 

एक रात उसको कहीं बाहर आग दिखाई दी। 

उसने पास जाकर देखा, वहाँ एक स्त्री कढ़ाई में पानी गरम कर रही थी। 

पास में ही दो दुबले बच्चे थे । 

'इस समय, रात में क्यों पानी गरम कर रहे हो !' - राजा ने उससे पूछा।

'क्या करूँ महाराज! सरदी के दिन हैं। बच्चों के लिए चुल्लू भर माँड़ भी नहीं है। इसलिए उन्हें पिलाने के लिए पानी गरम कर रही हूँ।  क्या चित्रगुप्त इस देश के राजा से न पूछेगा कि हमें क्यों इतने कष्ट दे रहा है !' - उसने कहा । राजा ने कुछ न कहा वह अपने नौकर के साथ घर गया। 

उसने एक बोरी भर चावल लिये, नौकर से कहा- ' अरे इसे मेरे सिर पर चढ़ा । उस गरीब को दे आयेंगे।' 

'मैं उठा लाऊँगा महाराज' - नौकर ने कहा ।

'कल क्या मेरे पाप भी तुम दोओगे' - राजा ने नौकर से पूछा ।

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