ब्रह्मा के भूमि, आकाश, भूमि पर रहने वाले जीव, नवधान्य आदि के बनाने के बाद भी मनुष्य सुख से रह न सके । 

ब्रह्मा की सृष्टि में उनको कुछ त्रुटियाँ दिखाई दीं । 

ऋतुओं के परिवर्तन से उनको विघ्न पहुँचने लगे। 

उनके आहार के काम आने वाले पौधे क्योंकि नष्ट हो जाते थे, इसलिए उनको हर साल बोना पड़ता था । 

मनुष्यों में भेदभाव बढ़े । 

कुछ धनी हो गये, कुछ गरीब। 

धनी गरीबों को सताने लगे । 

इसलिए मनुष्यों ने ब्रह्मा के पास दूत भेजने का निश्चय किया । 

इस कार्य के लिए कौवे को निर्वाचित किया ।

 'कौवे ! तुम ब्रह्मा के पास जाकर ये वर माँग कर लाओ । इतनी ऋतुएँ नहीं हो, हमेशा वसन्त ऋतु ही रहे। बाढ़, अनावृष्टि आदि न हो। जो पौधे एक बार लगा दिये गये वे हमेशा फल देते रहें। मनुष्यों में धनी और गरीब का भेदभाव न हो। सब समान हो, इस तरह के वर लाओ।' 

उनके निश्चय के अनुसार, कौआ उड़ा। 

ब्रह्मा के पास गया। 

ब्रह्मा के दर्शन करके उसने मनुष्यों की इच्छाएँ बतलाई। 

ब्रह्मा ने सब सुनकर कहा - 'ये इच्छाएँ ठीक ही हैं। मनुष्यों द्वारा माँगे हुए वर मैं तुम्हें दे रहा हूँ । तुम जाकर उन्हें ये दे देना । रास्ते में उन्हें किसी को देकर व्यर्थ न कर देना नहीं तो वे मनुष्यों तक न पहुँच पायेंगे। ' 

कौआ, अभिमान से फूला जा रहा था। 

वह ब्रह्मा से विदा लेकर, खुशी खुशी भूलोक की ओर चला ।

'सृष्टि की त्रुटियों को ठीक करने के लिए मेरे पास अद्भुत वर हैं।'  - यह सोचकर, वह थकान दूर करने के लिए एक पत्थर पर जा बैठा । 

'ओ कौवे भाई ! तुम्हारी शक्ल से लगता है कि तुम बहुत ही खुश हो क्या बात है ?' - पत्थर ने पूछा। 

कौवे ने कोई जवाब न दिया। 

अगर वह पत्थर से गप्पें शुरु करता तो उसे ब्रह्मा के दिये हुए वरों के बारे में भी बताना पड़ता ।

कौआ चुप था, पत्थर ने पूछा- 'अरे, कौवे भाई! मैं तो गरीब हूँ, मुझसे बातें करने के लिए क्यों घबराते हो ! मेरे पास क्या है ? न घर है, न खाना है, न कपड़ा है, न कुछ है। धूप में सूखता हूँ, पानी में भीगता हूँ, हम जैसों से भी क्यों नहीं तुम बातें करते हो?' यह सुन कौवे ने कहा - 'देख, पत्थर, मैं ब्रह्मा से जो वर लाया हूँ उनमें से एक तेरे सब कष्ट दूर कर देगा। भूमि पर अब इतनी ऋतुएँ नहीं होंगी, ऋतु होगी, और वह भी वसन्त । अब से तुझे वर्षा, गरमी, सर्दी नहीं सतायेंगे ।' 

एक ही ब्रह्मा का दिया हुआ वह वर यों पत्थर को मिल गया। इसलिए, तब से लेकर अब तक पत्थर ऋतुओं के परिवर्तन से प्रभावित नहीं होते। 

वे सर्दी में न काँपते हैं, न गरमी में पसीना ही बहाते हैं। 

उन्हें जुकाम भी नहीं होता । 

उसके बाद, पंख फड़फड़ाता कौआ उड़ा और एक पौधे पर जा बैठा । 

’क्यों, कौवे भाई, किसी बड़े काम पर जाते मालूम होते हो ? क्या बात है ?' - पौधे ने पूछा। 

कौवे ने कोई जवाब न दिया । 

'मैं ने बात छेड़ी और तुमने गाल फुला लिये क्यों इतना घमंड करते हो ? इसीलिए न कि साल के खतम होने पर मैं भी खत्म हो जाऊँगा ? मुख्य स्नेह है, आयु नहीं। क्यों, क्या सोच रहे हो ?' - पौधे ने पूछा। 

यह सुनकर, कौवे ने कहा - 'देख, पौधे ! मैं ब्रह्मा के पास से एक वर ला रहा हूँ, जो तेरे काम आ सकता है। अब से तेरा जीवन एक साल का न होगा । बहुत दिन जिओगे। और जिन्दगी भर फल दोगे। फूल दोगे। ' 

यह वर योंं पौधे को मिल गया। वह कालक्रम से पेड़ हो गया। तब से लेकर अब तक, पेड़ों के एक बार बोये जाने पर ये कई साल तक फूल फल देते आ रहे हैं। 

अब कौवे को न सूझा कि क्या करें। 

ब्रह्मा के दिये हुए वरों में दो वर यों चले गये। 

अगर उसने मनुष्यों से यह कहा तो वे उसे जिन्दा न छोड़ेंगे। 

इसलिए, बाकी वर उसने अपने ही लिए रख लिये । 

और मनुष्यों के पास जाकर उसने कहा - 'ब्रह्मा ने तुम्हारे माँगे हुए वर नहीं दिये हैं।' 

उसने यों झूठ बोला ।

यह पता लगते ही ब्रह्मा ने कौवे को क्षुद्र जीवी होने का शाप दिया । 

इसलिए यद्यपि कौओं में कोई भेदभाव नहीं है, तो भी वे क्षुद्र माने जाते हैं। 

उनको देखकर मनुष्य घृणा करते हैं। 

उन्हें कोई नहीं पालता है ।

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