इस प्रवचन से जानिए- १. अव्यक्त का अर्थ २. पुराणों के पांच लक्षण

प्रथम पुराण कौनसा है?

सबसे पहले एक ही पुराण था- ब्रह्माण्डपुराण, जिसमें चार लाख श्लोक थे। उसी का १८ भागों में विभजन हुआ। ब्रह्माण्डं च चतुर्लक्षं पुराणत्वेन पठ्यते। तदेव व्यस्य गदितमत्राष्टदशधा पृधक्॥- कहता है बृहन्नारदीय पुराण

१८ पुराणों के नाम क्या क्या हैं?

ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण।

पुराणॊं के रचयिता कौन है?

व्यासजी ने १८ पर्वात्मक एक पुराणसंहिता की रचना की। इसको लोमहर्षण और उग्रश्रवा ने ब्रह्म पुराण इत्यादि १८ पुराणों में विभजन किया।

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पुराणों के आख्यान सूत्र रूप में कहां मिलते हैं?

वेदों में जिसको विद्या कहा गया है, जिसे लोग आदिशक्ति कहते हैं और पराशक्ति भी कहते हैं, वही देवी माँ संसार के बंधनों को काटने में बहुत ही सक्षम है। और यह देवी माँ कहां विराजती हे? सबके हृदय में। सबके अर्थात सबके नहीं; दुरात्मा....

वेदों में जिसको विद्या कहा गया है, जिसे लोग आदिशक्ति कहते हैं और पराशक्ति भी कहते हैं, वही देवी माँ संसार के बंधनों को काटने में बहुत ही सक्षम है।
और यह देवी माँ कहां विराजती हे?
सबके हृदय में।
सबके अर्थात सबके नहीं; दुरात्मा लोग दुष्ट लोग देवी के बारे में सोच भी नही सकते।
सौन्दर्य लहरी में आदि शंकराचार्य पूछते हैं:
कथं त्वां प्रणन्तुं स्तोतुं वा अकृतपुण्यः प्रभवति।
जिसने पुण्य नहीं किया हो उसके द्वारा तुम्हारी स्तुति कैसे हो सकती है, वह तुम्हें कैसे प्रणाम कर पाएगा?
वह बहुत ही शीघ्र दर्शन देने वाली है, साधकों को।
मंत्र-सिद्धि, वाक-सिद्धि, अष्ट-सिद्धि आदि सारी सिद्धियां वह जल्दी ही दे देती है।
अपने सत्वरजस्तमोगुणों द्वारा जगत की सृष्टि, पालन और संहार वही करती है।
यह तो सब जानते हैं कि ब्रह्मा जगत के रचयिता हैं।
विष्णु के नाभि कमल में बैठकर उनकी ही प्रेरणा से ब्रह्मा सृष्टि में प्रवृत्त होते हैं।
विष्णु का आश्रय कौन है?
शेषनाग।
शेषनाग रूपी शय्या में भगवान लेटे हैं।
और नाग का आश्रय?
समन्दर अर्थात पानी।
बिना पात्र के पानी कहीं टिक सकता है?
नहीं।
उस समन्दर के पानी जिस पात्र में है, वह पात्र है देवी माँ, सबका आश्रय है देवी माँ, सभी प्राणियों में शक्ति बनकर विराजती है देवी माँ।
ब्रह्मा का उद्भव जैसे विष्णु के नाभि पद्म में हुआ उन्होंने सबसे पहले मां का ही स्तुति पाठ किया था।
निर्गुण और सगुण, दोनों ही उनका ही रूप हैं।
इन शब्दों से माता का स्मरण करके सूत जी ने भागवत की कथा शुरू कर दी।
श्रीमद् देवी भागवत में अठारह हज़ार श्लोक हैं।
इसका बारह स्कन्ध हैं और कुल मिलाकर इसमें तीन सौ अठारह अध्याय हैं।
यदि किसी भी ग्रंथ को पुराण कहना है तो उसका पांच लक्षण होना अवश्य है; सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश-वर्णन , मन्वन्तर, वंशानुचरित: ये हैं पुराणों के पांच लक्षण।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितं विप्र पुराणं पञ्चलक्षणम्।
एक कल्प समाप्त होने पर जब भगवान श्री रुद्र जगत का संहार कर देते हें उसके बाद जो रह जाता है उसे अव्यक्त कहते हैं।
अव्यक्त अर्थात उस अवस्था में पेड पौधे, जानवर, पक्षी, पहाड ऐसे अलग अलग चीज़ें नहीं रहते।
सारा जगत एक जैसा हो जाता है, जैसे पानी, इसीलिए उसे प्रलय जल कहते हैं।
पर जगत बहुत देर के लिये उस अवस्था में रह नहीं सकता।
अपने आप सृष्टि की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
भगवती महामाया नित्या है।
निर्गुणा है; देवी सत्वरजस्तमोगुणों से प्रभावित नहीं है।
पूरे जगत में माता व्याप्त है।
मंगलमयी है वह।
जो कुछ भी हमें दिखाई देता है सब देवी का ही अलग अलग रूप हैं।
योग मार्ग से माता जानी जाती है।
समस्त प्राणी या तो जगे हुए रहते हैं या सोये हुए रहते हैं या स्वप्नावस्था में रहते हैं; जाग्रदवस्था स्वप्नावस्था या सुषुप्त्यवस्था।
देवी माँ जिस अवस्था में है, वह इन तीनों से अतिरिक्त है, अतीत है, उसे तुरीयावस्था कहते हैं।
वही महामाया यदि राजसिक रूप में प्रकट होती है महासरस्वती।
यदि सात्विक रूप में प्रकट होती है तो महालक्ष्मी।
और तामसिक रूप में प्रकट होती है तो महाकाली।
जगत के सृजन से पूर्व, उसके सृजन के लिए जब देवी माता इन तीनों रूप धारण कर लेती है, उसे कहते हैं सर्ग।
देवी के आदेशानुसार ही ब्रह्मा सृष्टि करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और रुद्र संहार करते हैं; इन त्रिदेवों की उत्पत्ति को कहते हैं प्रतिसर्ग।
सूर्यवंश, चंद्रवंश, दैत्य-दानवों के वंश , इनकी वंशावली: ये सब बताया जाता है वंश में।
मन्वन्तर: एक कल्प का विभजन जो चौदह मन्वन्तरों में किया गया है; उसका वर्णन , इनके शासक कौन थे? ये सब- इसे मन्वन्तर कहते हैं।
वंशानुचरित अर्थात उन मनुओं के पीछे उनके वंशों का चरित्र।
पुराणों के अलावा व्यास जी ने महाभारत की भी रचना की है जिसके अन्दर सवा लाख श्लोक हैं।
महाभारत को इतिहास कहते हैं।

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