अग्नि पुराण

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श्रियं सरस्वतीं गौरीं गणेशं स्कन्दमीश्वरम्। 

ब्रह्माणं वह्निमिन्द्रादीन् वासुदेवं नमाम्यहम्॥

लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, महादेव जी, ब्रह्मा, अग्नि, इन्द्र आदि देवताओं तथा भगवान् वासुदेवको मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥

नैमिषारण्यकी बात है। शौनक आदि ऋषि यज्ञोंद्वारा भगवान् विष्णुका यजन कर रहे थे। उस समय वहाँ तीर्थयात्राके प्रसङ्गसे सूतजी पधारे। महर्षियोंने उनका स्वागत-सत्कार करके कहा-॥२॥

ऋषि बोले-सूतजी! आप हमारी पूजा स्वीकार करके हमें वह सारसे भी सारभूत तत्त्व बतलानेकी कृपा करें, जिसके जान लेने मात्र से सर्वज्ञता प्राप्त होती है॥३॥

सूत जी ने कहा-ऋषियो! भगवान् विष्णु ही सार से भी सारतत्त्व हैं। वे सृष्टि और पालन आदिके कर्ता और सर्वत्र व्यापक हैं। वह विष्णुस्वरूप ब्रह्म मैं ही हूँ'-इस प्रकार उन्हें जान लेनेपर सर्वज्ञता प्राप्त हो जाती है। ब्रह्मके दो स्वरूप जाननेके योग्य हैं-शब्दब्रह्म और परब्रह्म। दो विद्याएँ भी जाननेके योग्य हैं-अपरा विद्या और परा विद्या। यह अथर्ववेद की श्रुतिका कथन है।

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