Jaya Durga Homa for Success - 22, January

Pray for success by participating in this homa.

Click here to participate

दत्तात्रेय तंत्र

147.6K
22.1K

Comments

Security Code
56048
finger point down
वेदधारा के प्रयासों के लिए दिल से धन्यवाद 💖 -Siddharth Bodke

आपकी वेबसाइट बहुत ही अद्भुत और जानकारीपूर्ण है। -आदित्य सिंह

यह वेबसाइट बहुत ही शिक्षाप्रद और विशेष है। -विक्रांत वर्मा

यह वेबसाइट ज्ञान का खजाना है। 🙏🙏🙏🙏🙏 -कीर्ति गुप्ता

गुरुजी का शास्त्रों की समझ गहरी और अधिकारिक है 🙏 -चितविलास

Read more comments

Knowledge Bank

क्या बलदेव जी ने भीमसेन को प्रशिक्षण दिया था?

द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण पूरा होने के एक साल बाद, भीमसेन ने तलवार युद्ध, गदा युद्ध और रथ युद्ध में बलदेव जी से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

घर पर आरती कैसे करें?

सबसे पहले देवता के मूल मंत्र से तीन बार फूल चढायें। ढोल, नगारे, शङ्ख, घण्टा आदि वाद्यों के साथ आरती करनी चाहिए। बत्तियों की संख्या विषम (जैसे १, ३, ५, ७) होनी चाहिए। आरती में दीप जलाने के लिए घी का ही प्रयोग करें। कपूर से भी आरती की जाती है। दीपमाला को सब से पहले देवता की चरणों में चार बार घुमाये, दो बार नाभिदेश में, एक बार चेहरे के पास और सात बार समस्त अङ्गोंपर घुमायें। दीपमाला से आरती करने के बाद, क्रमशः जलयुक्त शङ्ख, धुले हुए वस्त्र, आम और पीपल आदि के पत्तों से भी आरती करें। इसके बाद साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करें।

Quiz

ग्यारहवाँ रुद्र का अवतार कौन है ?

भारतीय तन्त्र शास्त्रों की श्रृंखला में छोटे-बड़े अनेक तन्त्र-ग्रन्थ मुद्रित हुए हैं। उनमें 'दत्तात्रेय तन्त्र' भी सर्वमान्य ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ भगवदवतार, महायोगी, कालजयी, त्रिदेवरूप तथा परमसिद्ध श्रीदत्तात्रेय द्वारा तन्त्रशास्त्र के परमाचार्य भगवान् शंकर से प्रार्थना करके विशेषतः कलियुग में सिद्ध-तन्त्रविद्या- विधान के रूप में प्राप्त किया गया है।
अट्ठाईस पटलों में निर्मित यह तन्त्रग्रन्थ उत्कीलन आदि विधानों की अपेक्षा रखे बिना ही सर्वदोषों से रहित, शीघ्र सिद्धि देने वाला बतलाया गया है। भगवान् शंकर ने अपने परम भक्त श्री दत्तात्रेय के लिये अत्यन्त गुप्त होते हुए भै इसको प्रकट किया है। इसमें परम गोपनीय विषयों को संकलित किया गया है, जिनमें क्रमश: 1. मारण 2. मोहन 3. स्तम्भन. 4. विद्वेषण, 5. उच्चाटन, 6. वशीकरण 7. आकर्षण, 8. इन्द्रजाल, 9. यक्षिणी साधन, 10. रसायन प्रयोग 11. कालज्ञान 12. अनाहार, 13. साहार 14. भूमिगत, 15. मृतवत्सा, बाँझपन तथा पुत्र सन्तति न होने के दोषों का निवारण तथा पुत्र प्राप्ति के उपाय 16. जयवाद युद्ध में तथा जुआ आदि में जीतने के उपाय 17. वाजीकरण, 18. भूतग्रह-निवारण, 19. सिंह - व्याघ्र भय निवारण तथा 20. साँप और बिच्छू आदि जहरीले जीवों के भय से बचने के प्रयोग आदि मन्त्र और विधि सहित 28 पटलों में दिये हैं।
ऐसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का सांगोपांग विवेचन और प्रामाणिक अनुवाद आज तक नहीं हो पाया था। विद्वान् लेखक ने अपने दीर्घकालीन
अनुभव और शास्त्रीय ज्ञान के आधार पर 'दत्तात्रेय तन्त्र' को सर्वांगपूर्ण बनाने का कार्य किया है।
इसके साथ ही भगवान् दत्तात्रेय की साधना के लिये विविध मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र- प्रयोग भी इसमें दिये गये हैं। ग्रन्थ की विस्तृत एवं अनुसन्धान पूर्ण भूमिका में श्रीदत्त भगवान् की जीवनी, कार्यकलाप. उपलब्ध साहित्य एवं तन्त्र-साधना के सोपानों का भी क्रमश: सर्वोपयोगी निर्देश दिया है।
एक दृष्टि में
समस्त चराचर के कल्याण की कामना से भगवती जगदम्बा के आग्रह से भगवान् शिव ने 'तन्त्र विद्या' का उपदेश दिया है। इसमें प्राणीमात्र के जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों का निवारण करने का विधान है। इसके साथ ही ऐसी कोई इच्छा शेष नहीं रहती कि जो तन्त्र-साधना के द्वारा पूर्ण नहीं की जा सकती।
'तन्त्र शास्त्र' एक महान् वैज्ञानिक देन है, जिसके द्वारा बताये गये मार्ग का अवलम्बन लेकर साधक मनुष्य बड़ी से बड़ी कामनाओं को सहज रूप में साध सकता है। इस विद्या की यह विशेषता है कि यह प्रकृति के विशिष्ट उपादानों के द्वारा विधि-विशेष से साधना करके, मन्त्र जप से उसे तेजस्वी और कार्य सम्पादन के सामर्थ्य से सम्पन्न बनाता है तथा स्वयं के और अन्य जनों के कष्ट निवारण, इच्छित फल प्राप्ति एवं कल्याण के मार्ग को प्रशस्त कर लेता है।
'भगवान् दत्तात्रेय की उपासना' एक ऐसी उपासना है, जिसके द्वारा कलियुग में शीघ्र सफलता मिलती है। सिद्ध महायोगी के रूप में सर्वत्र प्रत्यक्ष होकर फल देने वाले ये जागृत देवता हैं। ये अमर देवता हैं। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मिश्रित तेज का निवास है, अतः सृष्टि, स्थिति और प्रलय के सभी कार्य सिद्ध करने में इनकी पूर्ण शक्ति विद्यमान है।
दत्तात्रेय तन्त्र भगवान् शिव और दत्तात्रेय के संवाद के रूप में निर्मित है। इसमें बीस प्रकार के तान्त्रिक कर्मों का विधान दिया गया है। इसके प्रयोग सुपरीक्षित हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण, सर्वमान्य तन्त्र है।
लेखकीय प्ररोचना
आर्यशास्त्रों की परम्परा में तन्त्रागम साहित्य की महत्ता सर्वोपरि मान्य है। इस साहित्य की सृष्टि को अपौरुषेय माना गया है। राष्ट्र के समुज्ज्वल भविष्य की भावना के साथ ही परस्पर प्रेम, सहज उदारता, सात्त्विक विचार एवं विशुद्ध आचार की आज अत्यन्त आवश्यकता है, जिसे प्राप्त कराने में तन्त्रागम पूरी तरह से समर्थ है। भौतिक विपदाओं से मुक्त रहकर ही कुछ उत्तम कार्य किये जा सकते हैं। मानसिक शान्ति, वैचारिक स्थिरता और लौकिक अपेक्षाओं में सन्तोष रहने पर किये जाने वाले सत्प्रयास मुख्य लक्ष्य तक पहुँचाने में वस्तुतः सहायक होते हैं। तन्त्र के मार्ग निर्देशन में ऐसे तथ्य निर्दिष्ट हैं, जिनके अनुपालन से शान्ति, स्थिरता एंव सन्तोष की प्राप्ति हो जाती है।
भारतीय विद्याओं का लक्ष्य सत्य, शिव और सुन्दर ही रहा है। शिव की प्रतिष्ठा और अशिव अकल्याण की निवृत्ति लक्ष्य है। इसकी पूर्ति तन्त्र- साहित्य से सम्भव है। तन्त्र हमें आध्यात्मिक दृष्टि प्रदान करते हैं, आधिदैविक ज्ञान से सम्पन्न बनाते हैं तथा आधिभौतिक संकटों से छूटने का सरलतम मार्ग बतलाते हैं। तन्त्रों के अनुसार की जाने वाली साधना सिद्धि के बहुत निकट रहती है। थोड़े से प्रयास से किसी भी बड़े कार्य को अनुकूल बनाने के उपाय तन्त्रों में दिखाये गये हैं। उत्तम, निश्छल एवं सर्वकल्याण की भावना से सभी वर्ग के खुले हुए हैं महायोगीराज श्रीदत्तात्रेय ने भगवान् शिव के लिये तन्त्रों के द्वार समक्ष तन्त्र और तान्त्रिक क्रिया-प्रक्रियाओं के ज्ञान की प्राप्ति के लिये कुछ प्रश्न रखे।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

हिन्दी

हिन्दी

आध्यात्मिक ग्रन्थ

Click on any topic to open

Copyright © 2025 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...