यथा खरश्चन्दनभारवाही

यथा खरश्चन्दनभारवाही भारस्य वेत्ता न तु चन्दनस्य |
एवं हि शास्त्राणि बहून्यधीत्य ह्यर्थेषु मूढाः खरवद् वहन्ति ||

 

जैसे चंदन के भार को उठाता हुआ गधा बस उस के भार को ही समझता है और चंदन के मूल्य को नहीं समझता वैसे ही कुछ व्यक्ति बहुत शास्त्राध्ययन कर के भी उस के तत्त्व को न समझकर उस को धन कमाने का स्रोत ही समझते हैं |

 

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