इस प्रवचन से जानिए- १. भगवान विष्णु कैसे देवी के अधीन रहते हैं २. त्रिदेव किसके सहारे अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं
व्यास जी सोचने लगे, किसकी आराधना करूँ-विष्णु की, रुद्र की, इन्द्र की, अग्नि की या वरुण की ? किस को मन में रखकर तप करने से शीघ्र ही मेरी अभिलाषा पूरी होगी ? देवताओं में शीघ्र ही प्रसन्न होने वाला कौन है? तब तक नारद जी वहाँ आये। ....
व्यास जी सोचने लगे, किसकी आराधना करूँ-विष्णु की, रुद्र की, इन्द्र की, अग्नि की या वरुण की ?
किस को मन में रखकर तप करने से शीघ्र ही मेरी अभिलाषा पूरी होगी ?
देवताओं में शीघ्र ही प्रसन्न होने वाला कौन है?
तब तक नारद जी वहाँ आये।
व्यास जी को चिन्ता ग्रस्त देखकर उन्होंने पूछा- क्या बात है ?
व्यास जी बोले: मेरि संतान नहीं है।
संतान हीन व्यक्ति न इस जन्म में सुखी होगा न परलोक में।
मुझे संतान चाहिए; इसके लिये मैं तप करने जा रहा हूँ।
लेकिन तप किसका करूँ?
किस देवता के चरणें में पडूँ ताकि मुझे शीघ्र ही संतान प्राप्ति हो जायें?
नारद जी बोले: एक बार मेरे पिता ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को घोर तपस्या करते हुए देखा।
भगवान विष्णु जगदीश हैं, जगन्नाथ हैं, जगत्पति हैं, जगद्गुरु हैं।
वे क्यों तपस्या कर रहे हैं और किसकी तपस्या कर रहे हैं?
ब्रह्मा जी बोले: मैं तो विस्मय में पड गया हूँ, आप ही समस्त विश्व के अधीश हैं, आप ही सृष्टिकर्ता हैं, पालनकर्ता हैं, संहारकर्ता हैं।
आपसे श्रेष्ठ यह कौन है जिसके ध्यान में आप लगे हुए हैं?
आपकी आज्ञा से सूर्य आकाश में भ्रमण करता है, आपकी आज्ञा से हवा चलती है, आप की आज्ञा से अग्नि जलता है, आपकी आज्ञा से बादल समय पर बरसते हैं।
आप किसका ध्यान कर रहे हैं?
आपसे बढ़कर अन्य किसी देवता के बारे में मैं ने सुना तक नहीं।
मैं बडी शंका में पड़ गया हूँ।
कृपा करके मुझे बताएं।
भगवान् विष्णु ने कहा: ठीक है, मैं आपको बताता हूँ।
यह तो सभी जानते हैं कि आप जगत की रचना करते हैं, मैं पालन करता हूँ और रुद्र संहार करते हैं।
लेकिन जो वेदविद् ज्ञानी शास्त्रज्ञ लोग हैं वे कहते हैं, हम तीनों से भी अन्य एक शक्ति है जिसका सहारा लेकर आप सृष्टि करते हैं, मैं पालन करता हूँ और महादेव संहार करते हैं।
वही शक्ति आप में राजसिक शक्ति बनकर मुझमें सात्विक शक्ति बनकर और महादेव में तामसिक शक्ति बनकर स्थित है।
यदि वह शक्ति नहीं है तो न आप सृष्टि कर पायेंगे, न में पालन कर पाऊँगा और न रुद्र संहार कर पायेंगे।
हम तीनों उस शक्ति के अधीन हैं, उस शक्ति के वश में है।
इसके बारे में मैं आपको और सुनाता हूँ।
यह भी आप जानते हैं कि योग निद्रा के वक्त मैं परतन्त्र हूँ, तब उसी शक्ति के अधीन में हूं और उसी शक्ति के द्वारा योगनिद्रा से जगाया जाता हूँ।
यदि मैं तपस्या करता हूँ तो उसी शक्ति का आश्रय लेकर।
यदि में लक्ष्मी के साथ सुख से रहता हूँ तो उसी शक्ति का आश्रय लेकर।
यदि में दानवों के साथ अति घोर युद्ध करता हूँ तो उसी शक्ति का आश्रय लेकर।
आप भूल गये क्या?
में ने मेरे ही कान के मल से उत्पन्न मधु और कैटभ नामक दानवों से पांच हजार साल तक की लडाई लडी थी और अंत में उन दोनों को मार डाला था।
उस समय मेरा अवलंब वही शक्ति थी इस बात को आप नहीं जान पाये?
महा समुद्र में शेष के ऊपर परम पुरुष के रूप में यदि में रहता हूँ तो उस शक्ति की इच्छा से।
किसको अच्छा लगेगा कि देवता स्वरूप छोड़कर मत्स्य वराह और मनुष्य जैसे तिर्यक योनि प्राप्त कर भूतल में आये और व्यवहार करें, ये सब में करता हूँ तो उस शक्ति की प्रेरणा से।
यदि में सर्वथा स्वतंत्र होता तो उस सुखमय शय्या को छोड़कर, लक्ष्मी की निकटता छोड़कर, एक पक्षी के ऊपर बैठकर युद्ध करने निकल पडूँगा?
करना पडता है भगवान कहते हैं , कराती है वह शक्ति।
स्वेच्छा से नहीं करता हूँ मे यह सब।
एक बार आपके सामने ही धनुष की डोरी के टूट जाने से मेरा सिर कट गया था।
बाद में उसकी जगह पर एक घोडे का सिर जोड दिया गया और मेरा नाम पडा हयग्रीव।
हयग्रीव अर्थात् घोडे के सिरवाला ।
यदि में स्वतंत्र होता, स्वाधीन होता, तो यह उपहास होने देता क्या?
यह विडम्बना होने देता क्या?
मैं कदापि स्वतंत्र नहीं हूँ, हमेशा हमेशा उस शक्ति के अधीन हूँ।
उस शक्ति का ही ध्यान करता रहता हूँ।
नारद जी बोले: यह बातचीत हुई थी मेरे पिता और भगवान् विष्णु के बीच।
अब आप समझ गये होंगे पुत्र प्राप्ति के लिए किसकी आराधना करनी है।
उस देवी पराशक्ति महामाया जगदम्बिका की आराधना कीजिए।
वह आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी करेगी।
व्यास जी ने भगवती की चरणारविन्दों में अपना ध्यान लगाकर तप करना शुरू किया।
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