परोऽपि हितवान् बन्धु:

परोऽपि हितवान् बन्धुर्बन्धुरप्यहित: पर:।

अहितो देहजो व्याधिर्हितमारण्यमौषधम्।
 
 
अगर कोई पराया होकर भी हमारा भला चाहता है तो वह अपना है| अगर कोई अपना होकर भी हमारा भला नही चाहता है तो वह पराया ही है| व्याधि हमारे शरीर से उत्पन्न होते हुए भी बुराई ही करती है| लेकिन कहीं दूर एक जंगल में उत्पन्न औषधि हमारे शरीर की भलाई करती है|
 
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