जंभेश्वर

जंभेश्वर जी कहते हैं कि करनी और कथनी के अन्तर को तिरोहित करो तथा संशय और निन्दा का सर्वथा त्याग कर एकाग्र मन से विष्णु का जाप करो विष्णु के सन्मुख अपने को समर्पण कर दो। विष्णु-भक्ति करने वालों को यह पक्का विश्वास दिलाते हैं कि यदि तुमने मेरी इस विष्णु-आराधना की आज्ञा का पालन किया तो तुम्हें निश्चय ही मोक्ष की उपलब्धि होगी। यदि तुम कृष्ण की ओर उन्मुख होकर चले तो मानव-जीवन को सार्थक करते हुए संसार के दुःख-द्वन्द्वों से पार हो जाआगे । जिस परमेश्वर-विष्णु की आराधना युधिष्ठिर ने की, उसीकी आराधना तुम करो। बिना हरि की आराधना के प्राणी विष्णु-धाम का अधिकारी नहीं बनता । जंभेश्वर जी कहते हैं जिसको हरि में पूर्ण अनुरक्ति है तथा जो अपनी आशाओं से निराश्रित हो चुका है उसे वह हरि, नारायण अथवा नर रूप में अवश्य मिलते हैं और मोक्ष के द्वार प्रशस्त करते है। किन्तु विष्णु में दृढ आस्था होनी चाहिये।
जंभेश्वर जी मूर्ख और भ्रमित प्राणी को सतत् सावधान करते हैं तथा आयु के प्रतिक्षण क्षीण होने की ओर संकेत कर उसे पूछते हैं -


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