Atharva Veda Vijaya Prapti Homa - 11 November

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परलोक

परलोक

 

वैदिक शास्त्रों में अनेक लोकों का उल्लेख है जिन्हें परलोक कहते हैं।

इनमेंं से कुछ हैं - सत्यलोक, वरुणलोक, स्वर्गलोक, अग्निलोक, सूर्यलोक, इन्द्रलोक, पितृलोक, और नरकलोक।

धरती पर जीवन के वाद आत्मा को इनमें से किसी एक लोक में जाना होता है।

इसके बाद वहां कुछ समय सुख या दुख का अनुभव करके फिर से धरती पर पुनर्जन्म होता है।

कुछ आत्माएं साधना और भगवत्कृपा द्वारा जीवन्मुक्त होकर परब्रह्म में विलीन हो जाती हैं; उनका पुनर्जन्म नहीं होता।

परलोक जाने के चार पथ

१. ब्रह्मपथ - कर्म के बन्धन छूट जाने पर कुछ आत्माएं इस पथ से पर्रब्रह्म की ओर जाती हैं।

२. देवपथ - जो ज्ञान के साथ यज्ञ, तप, दान आदि सत्कर्म कर्म करते हैं, वे इस मार्ग से स्वर्ग जैसे उत्तम लोकों में आनन्द का अनुभव करने जाते हैं।

३. पितृपथ - ज्ञान अर्जित किये बिना जो सत्कर्म करते हैं वे इस मार्ग से पितृलोक को प्राप्त करते हैं।

४. यमपथ - जो धरती पर विहित कर्म को नहीं करते हैं और अविहित करं को करते हैं वे इस पथ से यमलोक पहुंचकर यमराज द्वारा दण्डित हो जाते हैं।

इनमें से ब्रह्मपथ को परमागति, देवपथ को उत्तमागति, पितृपथ को सद्गति और यमपथ को दुर्गति कहते हैं।

किस परलोक की प्राप्ति होगी?

यह कर्म, नाडी, आकाश, छन्द, देव, और आतिवाहिक - इन छः पर निर्भर है।

इनमें से सबसे मुख्य है धरती पर किया हुआ कर्म।

भक्तों के लिए परलोक

जो देवताओं की उपसना करते हैं, वे लोग देहांत के बाद उन उन देवताओं के धाम पहुंचते हैं जैसे विष्णु के भक्त वैकुण्ठ, शिव के भक्त कैलास, देवी के भक्त देवीलोक।

इष्टदेवता की प्राप्ति चार स्तर पर होती है:

  • सालोक्य - उनके लोक में स्थान मिलना।
  • सामीप्य - सर्वदा उनके साथ रहना।
  • सारूप्य - उनके जैसा रूप मिलना।
  • सार्ष्टि - उनके समान वैभव मिलना।
  • सायुज्य - उनमें लय हो जाना।
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भारतीय संस्कृति व समाज के लिए जरूरी है। -Ramnaresh dhankar

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