करवा चौथ की कथा

Karva Chauth

  

वनवास के समय जब अर्जुन तपस्या करने इन्द्रकील पर्वत चले गये तो द्रौपदी उनको लेकर चिन्ता करने लगी। 

तपस्या करना कोई आसान काम नहीं है। 

अर्जुन के बहुत सारे शत्रु भी हैं जो उन्हें हानि पहुंचा सकते हैं।

द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा - हे जगदीश्वर! आप मुझे ऐसा एक रहस्य व्रत बताइए जिसे करने से सारे विघ्न टल जाएंगे।

भगवान बोले - वत्से! यही सवाल पहले पार्वती जी ने भगवान शंकर से भी पूछा था। उन्होंने जो जवाब दिया वह मैं तुम्हें सुनाता हुं।

शंकर जी बोले - हे महेश्वरि! मैं तुम्हें सारे विघ्नों का विनाश करनेवाला करवा चौथ व्रत के बारे में बताता हूं।

पार्वती जी बोली - इस व्रत की महिमा क्या है? इसे करने की विधि क्या है? 

इस व्रत को पहले किसने किया था? 

शंकर जी बोले - इन्द्रप्रस्थ में वेदशर्मा नामक एक विद्वान रहता था। उनकी पत्नी थी लीलावती। 

उनके सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम था वीरावती।

वीरावती का विवाह एक उत्तम विद्वान के साथ संपन्न हुआ। 

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आने पर वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ उपवास रखा। 

सन्ध्या के समय वड के वृक्ष और उसके नीचे शंकर, गणेश, और कार्तिकेय के साथ गौरी की रंगोली बनाकर पूजा करने लगी। 

माता गौरी से सौभाग्य और अच्छी सन्तति के लिए प्रार्थना करके चन्द्रोदय की प्रतीक्षा कर रही थी। 

चन्द्रमा को अर्घ देने के बाद ही भोजन करने की विधि है।

वीरावती बालिका थी। 

भूख और प्यास से पीडित होकर भूमि पर बेहोश गिर पडी। 

सब व्याकुल हो गये। कोई उस पर पानी छिडकने लगा तो कोई हवा करने। 

भाइयों ने आपस में सोच विचार किया। 

एक भाई हाथ में जलती हुई मसाल लेकर एक पेड पर चढ गया। 

वीरावती को मसाल दिखाकर बताया कि - देखो चन्द्रोदय हो चुका है। 

अब तुम अर्घ देकर भोजन कर लो।

वीरावती ने भोजन किया। 

पर उस दोष के कारण उसका पति मर गया। 

वीरावती व्रत के बाद अपने पति के घर गयी तो उसकी पति का मृत शरीर ही मिला। 

उसे इस दुर्भाग्य का कारण समझ में नहीं आया। 

तब से उसने कठोर नियमों का पालन करके एक साल तक शिवपूजा की।

अगले करवा चौथ पर जब वीरावती की भाभियां व्रत कर रही थीं तो देवेन्द्र की पत्नी शचीदेवी वहां चली आई। 

उन्होंने वीरावती को दुखी देखकर सारी बातें पूछ लीं। 

जब वीरावती ने देवी से पूछा कि मैं ने ऐसा क्या पाप किया कि इतनी छोटी उम्र में ही विधवा बन गई तो देवी ने बताया - तुम ने करवा चौथ पर चन्द्रोदय से पहले भोजन किया, इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ। 

अगर अपने पति को फिर से जीवित देखना चाहती हो तो उसी व्रत को विधि के साथ करो। 

करवा चौथ व्रत के पुण्य प्रभाव से वह पुनर्जीवित हो जाएगा।

भगवान श्रीकृष्ण बोले - शची देवी की बात सुनकर वीरावती ने विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। 

व्रत पूरा हो जाने पर शची देवी ने एक चुलू भर जल लेकर वीरावती के पति के मरण स्थान पर छिडक दिया। 

वीरावती का पति वापस आ गया। वह अपने पति के साथ घर वापस आकर धन, धान्य और सन्तान के साथ दीर्घ काल तक रही।

इसलिए, हे द्रौपदि! तुम भी अर्जुन की रक्षा और दीर्घायु के लिए करवा चौथ व्रत का पालन करो।

द्रौपदी ने भी करवा चौथ व्रत को किया। पाण्डव, कौरवों के साथ संग्राम जीतकर अपने राज्य और संपत्ति को पा गये।

यह व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए है। 

करवा चौथ पर दिन भर उपवास रखकर सन्ध्याकाल में पूजा करनी चाहिए। जल या दूध से भरे करवा किसी सत्पात्र को ऐसा कहकर दाने में देना चाहिए - इस दान से मेरे पति चिरंजीवी बन जाएं। रात को चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को अर्घ देकर ही भोजन करना चाहिए।

करवा चौथ व्रत को करनेवाली स्त्री अपने पति के साथ पुत्र, धन, धान्य और स्वास्थ्य समेत चिरकाल तक सुहागिन बनकर रहेगी।

- वामन पुराण पर आधारित

करवा चौथ पर चन्द्रमा को छलनी से इसलिए देखते हैं कि चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को प्रत्यक्ष देखने पर अपवाद सुनना पडेगा - ऐसा शाप गणेश जी ने दिया है। 

 

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