इस प्रवचन से जानिए- ब्रह्मा जी ने योगनिद्रा देवी का कैसे वर्णन किया था
ब्रह्मा जी योग निद्रा की स्तुति करने लगे। देवि त्वमस्य जगतः किल कारणं हि ज्ञातं मया सकलवेदवचोभिरम्ब। यद्विष्णुरप्यखिललोकविवेककर्ता निद्रावशं च गमितः पुरुषोत्तमोऽद्य। वेदों से यही पता चलता है कि आप ही समस्त जगत का का....
ब्रह्मा जी योग निद्रा की स्तुति करने लगे।
देवि त्वमस्य जगतः किल कारणं हि ज्ञातं मया सकलवेदवचोभिरम्ब।
यद्विष्णुरप्यखिललोकविवेककर्ता निद्रावशं च गमितः पुरुषोत्तमोऽद्य।
वेदों से यही पता चलता है कि आप ही समस्त जगत का कारण है।
और अब आपकी ही शक्ति से भगवान विष्णु यहाँ निद्रा के वश में हो गये हैं।
को वेद ते मोहविलासलीलां मूढोऽस्म्यहं हरिरयं विवशश्च शेते।
ईदृक्तया सकलभूतमनोनिवासे विद्वत्तमो विबुधकोटिषु निर्गुणायाः।
आपकी लीला को कौन जान सकता है।
भगवान का गहरी नींद में जाना, उसी समय इन दानवों का आना, मुझे आपत्ति में डालना, मेरा मन भ्रांत हो गया है।
इसके पीछे क्या रहस्य है ,समझ में नहीं आ रहा हे।
आपकी लीलाओं के पीछे क्या रहस्य है इसे करोडों देवताओं में से भी कोई नहीं जानता।
सांख्या वदन्ति पुरुषं प्रकृतिं च यां तां चैतन्यभावरहितां जगतश्च कर्त्रीम्।
किं तादृशासि कथमत्र जगन्निवासश्चैतन्यताविरहितो विहितस्त्वयाऽद्य।
सांख्य शास्त्र छः दर्शनों में एक प्रमुख दर्शन है।
इसके अनुसार जगत की रचना ,पुरुष और प्रकृति से होती है, जिसमें प्रकृति अचेतन वस्तु है और पुरुष उसके अंदर जो चेतना है वह।
कहते हैं कि देवी का स्वरूप प्रकृति है।
ब्रह्माजी पूछते हैं:अगर यह बात सही है तो फिर, पुरुषोत्तम भगवान क्यों चेतना शून्य पडे हैं?
अचेतन प्रकृति के वश में भगवान कैसे आ गये?
देवी ही यहाँ चेतनारूपी दिखाई पडती है।
नाट्यं तनोषि सगुणा विविधप्रकारं नो वेत्ति कोऽपि तव कृत्यविधानयोगम्।
ध्यायन्ति यां मुनिगणा नियतं त्रिकालं सन्ध्येति नाम परिकल्प्य गुणान् भवानि।
आप तो नाचती रहती हैं एक कुशल नर्तकी की तरह।
अपनी लीलाओं की नाच नाचती रहती हैं।
आपके रहस्यों को कोई नहीं जानता।
संत महात्मा लोग तो सुबह शाम और दोपहर के समय आपके ही ध्यान मे लगे रहते हैं।
आपको ही वे संध्या मानते है।
सन्ध्याकाल की आराधना आपको मन मे रखते हुए वे करते हैं।
बुद्धिर्हि बोधकरणा जगतां सदा त्वं श्रीश्चासि देवि सततं सुखदा सुराणाम्।
कीर्तिस्तथा मतिधृती किल कान्तिरेव श्रद्धा रतिश्च सकलेषु जनेषु मातः।
बुद्धि के रूप में सारे जगत को आप ही ज्ञान देती हैं।
लक्ष्मि के रूप में देवताओं को आप ही सुख प्रदान करती हैं।
समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी के रूप में प्रकट होकर सिर्फ अपने एक कटाक्ष से माता ने देवों की थकावट को दूर कर दिया था।
आप ही समस्त प्राणियों में कीर्ति, बुद्धि, धारणा शक्ति, कान्ति, श्रद्धा और उत्सुकता के रूप में रहती हैं।
नातः परं किल तर्कशतैः प्रमाणं प्राप्तं मया यदिह दुःखगतिं गतेन।
त्वं चाऽत्र सर्वजगतां जननीति सत्यं निद्रालुतां वितरता हरिणाऽत्र दृष्टम्।
अब इस बात के ऊपर तर्क वितर्क की कोई आवश्यकता नहीं है।
अन्य कोई प्रमाण भी यहां नहीं लगेगा।
यह जो कुछ भी हो रहा है इससे मुझे पता चल गया है कि आप ही समस्त जगत की जननी हैं; कह रहे हैं ब्रह्मा जी।
त्वं देवि वेदविदुषामपि दुर्विभाव्या वेदोऽपि नूनमखिलार्थतया न वेद।
यस्मात्तदुद्भवमसौ श्रुतिराप्नुवाना प्रत्यक्षमेव सकलं तव कार्यमेतत्।
आपकी लीलाएँ सबको दिखाई पड़ती है, लेकिन उनके पीछे जो रहस्य है, क्यों आप ये सब कर रही हैं, कैसे ये लीलाएँ एक दूसरे से जुडी हुई हैं; यह रहस्य किसी को नहीं पता।
यहाँ तक कि वेद के विद्वान भी इनको नहीं जानते।
वेदों की उत्पत्ति का कारण जब माता ही हैं तो शायद माता ने जानबूझकर ही इन रहस्यों को छिपाकर रखा होगा।
कस्ते चरित्रमखिलं भुवि वेद धीमान् नाहं हरिर्नच भवो न सुरास्तथाऽन्ये।
ज्ञातुं क्षमाश्च मुनयो न ममात्मजाश्च दुर्वाच्य एव महिमा तव सर्वलोके।
स्वयं मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तैंतीस करोड़ देव, ऋषि मुनि और मेरे तत्त्वज्ञ पुत्र, नारद जेसे मानस पुत्र, किसी ने भी आज तक आपकी महिमा को सम्पूर्ण रूप से नही जाना है।
ऐसा कोई बुद्धिमान नहीं है कि आपके बारे में पूर्ण रूप से जानने में समर्थ हो।
न कोई आपकी महिमा का वर्णन कर पाता है।
यज्ञेषु देवि यदि नाम न ते वदन्ति स्वाहेति देवविदुषो हवने कृतेऽपि।
न प्राप्नुवन्ति सततं मखभागधेयं देवास्त्वमेव विबुधेष्वपि वृत्तिदाऽसि।
हवन यज्ञों में मन्त्र के साथ, मन्त्र के अंत में जो स्वाहा शब्द का उच्चारण करते हैं, वह आपका ही पर्यायवाची शब्द है।
उसके बिना देवों के लिये जो यज्ञ में समर्पित किया है वह उनतक नहीं पहुँचता।
स्वाहा के रूप में आप ही देवों का पालन पोषण करती हैं।
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