स्वकार्ये समुपस्थिते

परोपदेशवेलायां शिष्टाः सर्वे भवन्ति हि |
विस्मरन्तीह शिष्टत्वं स्वकार्ये समुपस्थिते ||

 

जब दूसरों को उपदेश करना हो तो सब लोग शिष्ट और शास्त्रों का परिपालन करने वाले बन जाते हैं | पर जब खुद की बात आती है तो सब भूल जाते हैं कि हमें शिष्ट बनकर शास्त्र का परिपालन करना होता है |

 

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