किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या

मातेव रक्षति पितेव हिते नियुङ्क्ते
कान्तेव चाऽपि रमयत्यपनीय खेदम्|
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिं
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या|

 

विद्या माता की तरह पालन पोषण करती है| विद्या पिता की तरह अच्छा मार्गदर्शन करती है| विद्या पत्नी की तरह दुःख को दूर कर के सुख देती है| विद्या लक्ष्मी को बढाती है| विद्या चारों दिशाओं मे कीर्ति प्राप्त कराती‌ है| यह विद्या एक कल्पवृक्ष की तरह है| ये क्या क्या नहीं कर सकती?

 

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