शिकारी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला में करसोग घाटी में स्थित है।
यह मंदिर सनातन धर्म के ग्रन्थों में प्रसिद्ध है।
इस मंदिर में मां दुर्गा विराजती हैं।
ऋषि मार्कण्डेय ने इस जगह पर घोर तपस्या की थी।
उन्होंने चाहा कि माता महिषासुर मर्दिनी का प्रत्यक्ष दर्शन मिल जायें।
प्रसन्न होकर दुर्गा माता ने ऋषि को दर्शन दे दिया।
कुरुक्षेत्र युद्ध के समय पाण्डव सेना आगे बढते हुए भीष्माचार्य को रोक नहीं पा रहे थे।
अर्जुन ने मां शिकारी देवी का स्मरण और ध्यान किया।
मां के आशीर्वाद से उन्हें सफलता मिली।
पाण्डवों ने ही इस मंदिर का निर्माण किया था।
कई प्रयासों के बाद भी इस मंदिर का छप्पर नहीं लग पाया है।
मंदिर के आसपास के घने जंगल में बहुत सारे जानवर थे।
लोग इनका शिकार करने आते थे।
वे सफलता और सुरक्षा के लिए मां से प्रार्थना करके ही शिकार पर निकलते थे।
इसके कारण मां शिकारी देवी कहलाने लगी।
मंडी - चैल चौक - जान्जेहली - शिकारी देवी
दूरी - ८९ कि.मी.
मंडी - ८९ कि.मी.
कुल्लू - १५५ कि.मी
मनाली - २०० कि.मी.
शिमला - १८० कि.मी.
चण्डीगढ - ३०० कि.मी
एक समय दुर्गम नाम का एक भयंकर असुर था।
उसका जन्म हिरण्याक्ष के वंश में हुआ था।
देवों का बल वेद है।
इसलिये वह वेदों को नष्ट कर देना चाहता था।
दुर्गम ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।
ब्रह्मा जी से उसने वर मांगा - सारे वेद मेरे पास आ जायें और मैं देवों को परास्त करने जैसा बलवान बनूं।
ब्रह्मा जी ने कहा - तथास्तु।
तापस लोग वेद भूल गये।
पूजा, हवन इत्यादि सारे धार्मिक कार्य बंद हो गये।
देवों को भोग मिलना बंद हो गये।
वे बुढापे से बाधित होने लगे।
दुर्गम ने अमरावती को घेर लिया।
देव लोग वहां से भाग चले।
यज्ञ बंद हो गये तो पृथ्वी के प्राणी भी अकाल और भुखमरी से पीडित हो गये।
हर तरफ प्राणियों के लाश ही लाश दिखाई देने लगे।
देव और तापस मिलकर हिमालय पर तपस्या किये।
देवी मां जगदम्बा उनके सामने प्रकट हो गयी।
देवों और तापसों ने दुर्गम से रक्षा की प्रार्थना की।
तब तक ने अपनी सेना के साथ वहां पहुंचकर सबको घेर लिया।
माता के शरीर से भैरवी, बगला, गुह्यकाली इत्यादि कई शक्तियां उत्पन्न हो गयी।
देवी की शक्तियों और दुर्गम की सेना के बीच दस दिन तक लडाई चली।
दुर्गम की सेना समाप्त हो गयी।
ग्यारहवां दिन देवी और दुर्गम के बीच लडाई हुई।
मां ने उसके ऊपर पन्द्रह बाण छोडे।
वह मरकर गिर पडा।
मां ने कहा - मेरे हाथों दुर्गम का वध हुआ है।
इसलिए आज से मेरा एक नाम दुर्गा रहेगा।
पढ़ाई में सफलता के लिए गणेश मंत्र
ओं गं गणपतये सर्वविघ्नहराय सर्वाय सर्वगुरवे लम्बोदराय ....
Click here to know more..विद्या ददाति विनयम्
पढाई विनम्रता प्रदान करती है | विनम्रता के साथ मनुष्य योग....
Click here to know more..गणेश षोडश नाम स्तोत्र
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो वि....
Click here to know more..Please wait while the audio list loads..
Ganapathy
Shiva
Hanuman
Devi
Vishnu Sahasranama
Mahabharatam
Practical Wisdom
Yoga Vasishta
Vedas
Rituals
Rare Topics
Devi Mahatmyam
Glory of Venkatesha
Shani Mahatmya
Story of Sri Yantra
Rudram Explained
Atharva Sheersha
Sri Suktam
Kathopanishad
Ramayana
Mystique
Mantra Shastra
Bharat Matha
Bhagavatam
Astrology
Temples
Spiritual books
Purana Stories
Festivals
Sages and Saints