पर्जन्य अस्त्र का उपयोग प्राचीन समय में युद्धों के दौरान किया जाता था। यह एक प्रकार का बाण था, जिसके उपयोग से भारी वर्षा होती थी। पर्जन्य अस्त्र की मदद से शत्रु के अग्नि बाणों को शांत किया जा सकता था। ये वे अस्त्र हैं, जो मन्त्रों के माध्यम से सक्रिय किए जाते हैं। प्रत्येक अस्त्र का संबंध किसी विशेष देवता से होता है और इन्हें मन्त्रों और तंत्रों के माध्यम से संचालित किया जाता है। इन्हें दिव्य और मान्त्रिक अस्त्र कहा जाता है।
सत्ययुग में भगवती त्रिपुरसुंदरी को उनकी प्रमुखता के कारण 'आद्या' कहा जाता है। इसी प्रकार, त्रेतायुग में भगवती भुवनेश्वरी 'आद्या' कहलाती हैं, द्वापरयुग में भगवती तारा 'आद्या' के रूप में जानी जाती हैं, और कलियुग में भगवती काली को 'आद्या' कहा जाता है।
अथोत्तरन्यासाः । ॐ ह्रीं हृदयाय नमः । ॐ चं शिरसे स्वाहा । ॐ डिं शिखायै वषट् । ॐ कां कवचाय हुम् । ॐ यैं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ह्रीं चण्डिकायै अस्त्राय फट् । ॐ खड्गिणी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा । शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण....
अथोत्तरन्यासाः ।
ॐ ह्रीं हृदयाय नमः । ॐ चं शिरसे स्वाहा । ॐ डिं शिखायै वषट् । ॐ कां कवचाय हुम् । ॐ यैं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ह्रीं चण्डिकायै अस्त्राय फट् ।
ॐ खड्गिणी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा ।
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा ।
हृदयाय नमः ।
ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च ।
शिरसे स्वाहा ।
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरी ।
शिखायै वषट् ।
ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते ।
यानि चात्यन्तघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम् ।
कवचाय हुम् ।
ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके ।
करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः ।
नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।
अस्त्राय फट् ।
भूर्भुवःसुवरोमिति दिग्विमोकः ।
ध्यानम् ।
विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम् ।
हस्तैश्चापदरालिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ।
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