मनसि वचसि काये

मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः
त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः |
परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ||

 

मन में, वाणी में और शरीर में पुण्य रूपी अमृत से भरे हुए, तीनों लोक में उपकार कर के उस की प्रसन्नता को बढाते हुए, दूसरों के छोटे छोटे गुण को भी पर्वत के समान बडा गुण मानते हुए, अपने मन में प्रसन्न होते हुए सज्जन इस जगत में कितने हैं ? वे तो अतीव दुर्लभ होते हैं |

 

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शिव जी को अद्वितीय क्यों कहते हैं?

क्यों कि शिव जी ही ब्रह्मा के रूप में सृष्टि, विष्णु के रूप में पालन और रुद्र के रूप में संहार करते हैं।

रेवती नक्षत्र का मंत्र क्या है?

पूषा रेवत्यन्वेति पन्थाम्। पुष्टिपती पशुपा वाजवस्त्यौ। इमानि हव्या प्रयता जुषाणा। सुगैर्नो यानैरुपयातां यज्ञम्। क्षुद्रान्पशून्रक्षतु रेवती नः। गावो नो अश्वां अन्वेतु पूषा। अन्नं रक्षन्तौ बहुधा विरूपम्। वाजं सनुतां यजमानाय यज्ञम्। (तै.ब्रा.३.१.२)

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