परोपकाराय सतां विभूतयः

मूलं भुजङ्गैः शिखरं विहङ्गैः शाखाः प्लवङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः |
आश्चर्यमेतत् खलु चन्दनस्य परोपकाराय सतां विभूतयः ||

 

चंदन का वृक्ष अपने मूल में सांप को, अपने शिखर में पक्षियों को, अपनी शाखाओं में बंदरों को और अपने फूलों में भ्रमरों को आश्रय देता है | ऐसे ही होते हैं सज्जन जो मनुष्य, मृग, पक्षी इत्यादि सभी जीव जन्तुओं का उपकार कर के उन सब को आश्रय देते हैं |

 

 

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दिव्य चक्षु

सबके अन्दर दिव्य चक्षु विद्यमान है। इस दिव्य चक्षु से ही हम सपनों को देखते हैं। पर जब तक इसका साधना से उन्मीलन न हो जाएं इससे बाहरी दुनिया नहीं देख सकते।

अतिथि सत्कार का महत्त्व

अतिथि को भोजन कराने के बाद ही गृहस्थ को भोजन करना चाहिए। अघं स केवलं भुङ्क्ते यः पचत्यात्मकारणात् - जो अपने लिए ही भोजन बनाता है व्ह केवल पाप का ही भक्षण कर रहा है।

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