हम जानते हैं कि आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे कुशल और सरल तरीका है श्रीकृष्ण की कथाओं को सुनना।
लेकिन इसका क्या कारण है?
भगवान अपनी कहानियों में निवास करते हैं।
ये भगवान के बारे में कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि ये भगवान खुद हैं।
जब ये कहानियाँ आपके कानों में प्रवेश करती हैं, तो यह भगवान खुद ही आपके अंदर प्रवेश कर रहे हैं।
फिर वह आपके हृदय कमल में बस जाते हैं।
भगवान जहां होते हैं, वहां कुछ अशुभ कैसे हो सकता है?
नहीं। पाप, स्वास्थ्य की समस्याएं, तनाव, वित्तीय समस्याएं, भ्रम - ये सभी भगवान के निवास स्थान से भाग जाते हैं।
लेकिन क्यों कृष्ण की ही कहानियाँ?
क्योंकि भगवान के परिपूर्ण स्वरूप स्वरूप को कृष्ण की कहानियों में देखा जा सकता है।
श्रीराम जी की कहानियाँ हमें यह बताती हैं कि कैसे पूर्णता के साथ धार्मिकता के साथ एक मानव का जीवन जीना चाहिए।
आपको श्रीराम जी को अपने मातृका पुरुष और प्रेरणा स्रोत के रूप में लेना चाहिए और उनके जैसे जीना चाहिए।
लेकिन आप श्रीकृष्ण की तरह नहीं बन सकते।
क्योंकि वे पूर्ण मानव नहीं, वह पूर्ण भगवान हैं।
उन्होंने कई ऐसी बातें की हैं जो अतिमानवीय हैं।
उनके कुछ कृत्यों को मानव न्याय के परिभाषाओं में समझना संभव नहीं है।
ये दिव्य न्याय हैं जो कभी-कभी मानव न्याय की धाराओं को ओवरराइड करते हैं।
इसलिए, जब आप कृष्ण की कहानियों को सुनते हैं, तो वह पूर्ण, सर्वोच्च दैवत्व आपके अंदर प्रवेश करता है, आपके कानों के माध्यम से।
कथाकार अधूरा हो सकता है।
श्रवणकर्ता अधूरा हो सकता है।
लेकिन कृष्ण अधूरा नहीं हो सकते ।
उनकी कहानियाँ अधूरी नहीं हो सकतीं।
वे आपके अंदर की सभी नकारात्मक चीजों को दूर भगाती हैं, आपके चारों ओर की सभी नकारात्मक चीजें दूर भगाती हैं।
इसलिए हम उन्हें 'अंतर्यामी' कहते हैं, वे आपको अंदर से नियंत्रित करते हैं, वैकुण्ठ या गोलोक में बैठकर नहीं।
यह सिर्फ किसीने पहले जो भी पाप किया हो, उसका नहीं ही निवारण नहींं करता, बल्कि आपको भविष्य में पाप करने से भी रोकते हैं।
कैसे ?
भगवान की कहानियां आपके अंदर काम, क्रोध, लालच, अज्ञान, घमंड, और प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति को नष्ट कर देते हैं।
जब ये नष्ट हो जाते हैं, तो आप आगे पाप नहीं करते ।
जब पाप चला जाता है, तो सारी समस्याएं भी चली जाती हैं।
आपकी सभी बंधनें काट दी जाती हैं, आपकी सारी चिंताएं और भय चले जाते हैं।
और आपको अपनी ओर से कितना प्रयास करना है?
बस उनकी कहानियाँ ध्यानपूर्वक सुनें।
बाकी सब वे करेंगे।
भगवान अच्छे लोगों का मित्र हैं।
"शृण्वतां स्वकथां कृष्णः पुण्यश्रवणकीर्तनः,
हृद्यन्तःस्थो ह्यभद्राणि विधुनोति सुहृत्सताम्।" -
यह है श्रीमद्भागवत के पहले स्कंध के दूसरे अध्याय का 17 वां श्लोक का अर्थ ।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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