वैदिक धर्म के तीन अङ्ग हैं - यज्ञ, तप और दान।
व्रत इनमें से तप के अन्तर्गत है।
तब भी व्रतों में उपसना रूपी यज्ञ ओर दान भी होते हैं।
व्रत और उपवास पुण्य तिथियों में किये जाते हैं।
व्रत और उपवास रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
कई व्रतों का एक साथ पडने पर अगर परस्पर विरोधी कार्य आते हैं तो उनमें से एक को स्वयं करके दूसरा प्रतिनिधि से करायें।
अष्टमी, चतुर्दशी इत्यादियों में दिन में भोजन वर्जित है; अगर उसी दिन किसी अन्य व्रत की पारणा आ जाने पर भोजन कर सकते हैं।
रविवार को रात्रि भोजन वर्जित है; अगर अष्टमी इत्यादि रविवार को पडता है तो दिन-रात उपवास रखें।
संकटहर चतुर्थी में रात को भोजन करना चाहिए; अगर रविवार है तो रात को भी भोजन न करें।
पुत्रवान गृहस्थ को संक्रान्ति में उपवास नहीं करना चाहिए; अगर उस दिन अष्टमी पडती है तो उपवास ही रखें।
पुत्रवान गृहस्थ के लिए एकादशी और संक्रान्ति एक साथ आने पर जल, फल, मूल या दूध का सेवन करें।
एकादशी इत्यादियों में किसी अन्य व्रत की पारणा की रुकावट आयें तो जल से पारणा करें।
नित्य (जैसे सोमवार, शनिवार) एवं काम्य (जैसे सत्यनारायण व्रत) व्रत परस्पर विरोधी होने पर काम्य व्रत कि नियमों को ही प्रमुखता दें।
माहवारी के दौरान केवल उपवास रख सकते हैं। व्रत के पूजन, दान इत्यादि अंग किसी और से करायें।
व्रत करने से देवी देवता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है। मन और इन्द्रियों को संयम में रखने की क्षमता आती है।
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