Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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दुर्गा सप्तशती - क्षमापण स्तोत्र

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सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा का योगदान अमूल्य है 🙏 -श्रेयांशु

हिंदू धर्म के पुनरुद्धार और वैदिक गुरुकुलों के समर्थन के लिए आपका कार्य सराहनीय है - राजेश गोयल

आपके मंत्रों से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है। 🙏 -राजेश प्रसाद

इन मंत्रों से मेरा जीवन बदल गया है। 🙏 -मधुकर यादव

अद्वितीय website -श्रेया प्रजापति

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ब्रह्मा की आयु कितनी है?

ब्रह्मा की आयु ३,११,०४.००,००,००,००,०० मानव-वर्ष है।

भगवान के नामों का जाप करने के लिए कोई प्रतिबंध या नियम हैं?

भगवान विष्णु के पवित्र नामों का गायन सभी समय और स्थानों पर किया जा सकता है। इस भगवान के कीर्तन (जाप) के लिए कोई अशुद्धता का सवाल ही नहीं उठता जो सदा पवित्र हैं। भगवान की उपासना के लिए समय, स्थान या शुद्धता पर कोई प्रतिबंध नहीं है, क्योंकि वे हमेशा पवित्र होते हैं। यह दर्शाता है कि कोई भी कृष्ण, गोविंद और हरि के नामों का जाप हमेशा कर सकता है, चाहे परिस्थिति या व्यक्ति की शुद्धता की स्थिति कुछ भी हो। ऋषि पुष्टि करते हैं कि भगवान भक्त की शुद्धता या अशुद्धता से दूषित नहीं होते। इसके विपरीत, भगवान भक्त को शुद्ध करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं, जो उनकी परम पवित्रता को दर्शाता है।

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वेदों में कितने छंद प्रसिद्ध हैं ?

अथ देवीक्षमापणस्तोत्रम् । अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया । दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि । आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि । मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक....

अथ देवीक्षमापणस्तोत्रम् ।
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ।
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ।
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ।
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ।
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात् सुरेश्वरि ।

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