लिङ्ग पुराण

linga puran pdf cover pagr

ये देव गण सूर्य में क्रम से दो-दो महीने बसते हैं। ये सात सात के गण में हैं और अपने-अपने स्थान पर स्थित होने का अभिमान भी करते हैं।।६६।। ये सब अपने अपने तेज से सूर्य के तेज को बढ़ाते हैं। मुनि गण अपनी रची हुई स्तुतियों से देव गण की स्तुति करते हैं। गन्धर्व और अप्सराएँ अपने नृत्य और गीत से सूर्य की उपासना करते हैं। ग्रामणियाँ यक्ष और भूत गण सूर्य के रथ के घोड़ों की लगाम को पकड़ते हैं। सर्प गण सूर्य को वहन करते हैं। यातुधान उनके रथ के पीछे चलते हैं। वालखिल्य गण सूर्य को घेर कर उदय से अस्त तक उदयाचल से अस्ताचल तक ले जाते हैं।।६७-६९।। इन देवताओं के जैसा तेज, जैसा तप, जैसा योग, जैसा मंत्र और जैसा बल है, उनसे समृद्ध होकर सूर्य चमकता है। ये सब प्रत्येक दो-दो मास के लिए अपने समूहों (गणों) में सूर्य में स्थित रहते हैं।।७०-७१।। ऋषि गण, देवता गण. गन्धर्व, सर्प, अप्सराओं का गण, ग्रामणी, यक्ष और यातुधान मुख्य रूप से—ये तपते हैं, जल की वर्षा करते हैं, चमकते हैं, बहते हैं, सृजन करते हैं और प्रणियों के अशुभ कर्म को दूर करते हैं। ये इस रूप में कहे गये हैं।।७२-७३ ।। वे दुष्टों के शुभ को नष्ट करते हैं और कहीं-कहीं सज्जनों के अशुभ को भी दूर करते हैं।।७४।। वे दित्य विमान में बैठे रहते हैं जो विमान वायु वेग से चलता है। यह इच्छानुसार जहाँ चाहे वहाँ जा सकता है। ये पूरे दिन सूर्य के साथ घूमते हैं।।७५ ।। वे बरसते हैं, वे चमकते हैं, वे प्रसन्न करते हैं! हे ऋषियों! वे सब प्राणियों और आकाश को विनाश से रक्षा करते हैं।।७६।। मन्वन्तरों में स्वयं अपने पदों के स्थान का अभिमान करते हैं।।७७।। ये सातों समूह चौदह के समूह में सभी चौदह मन्वन्तरों में सूर्य में निवास करते हैं।।७८।। हे मुनीश्वरों! बुद्धिमान देवताओं के देवता के क्रियाकलापों का वर्णन कुछ का संक्षेप में कुछ का विस्तार में किया जैसा कि मैंने सुना था और जैसे वह घटित हुआ

आगे पढने के लिए यहां क्लिक करें

 

 

 

 

Copyright © 2024 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |