श्रीमद्भगवद्गीता हमारे धर्मग्रंथो में एक अत्यन्त तेजस्वी और निर्मल हीरा है। पिंड-ब्रह्मांड-ज्ञानसहित आत्मविद्या के गूढ़ और पवित्र तत्व को थोडे में और स्पष्ट रीति से समझा देनेवाला, उन्हीं तत्वों के आधार पर मनुष्यमात्र के पुरुषार्थ की अर्थात् आध्यात्मिक पूर्णावस्था की पहचान करा देनेवाला, भक्ति और ज्ञान का मेल कराके इन दोनों का शास्त्रोक्न व्यवहार के साथ संयोग करा देनेवाला और इसके द्वारा संसार से दुःखित मनुष्य को शान्ति दे कर उसे निष्काम कर्तव्य के आचरण में लगानेवाला गीता के समान बालबोध ग्रंथ, संस्कृत की कौन कहे, समस्त संसार के साहित्य में नहीं मिल सकता । केवल काव्य की ही दृष्टि से यदि इसकी परीक्षा की जाय तो भी यह ग्रंथ उत्तम काव्यों में गिना जा सकता है, क्योंकि इसमें आत्मज्ञान के अनेक गूढ सिद्धान्त ऐसी प्रासादिक भाषा में लिखे गये हैं कि वे बूढों और बच्चों को एक समान सुगम हैं और इसमें ज्ञानयुक्त भक्तिरस भी भरा पड़ा है। जिस ग्रंथ में समस्त वैदिक धर्म का सार स्वयं श्रीकृष्णभगवान् की वाणी से संगृहीत किया गया है उसकी योग्यता का वर्णन कैसे किया जाय ? महाभारत की लडाई समाप्त होने पर एक दिन श्रीकृष्ण और अर्जुन प्रेमपूर्वक बातचीत कर रहे थे।
Akupara The Immortal Tortoise
Akupara, the tortoise was older than even Chiranjeevi Rishi Markandeya. See how he helped king Indradyumna.....
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Shankaracharya Bhujangam
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