इस प्रवचन से जानिए राजा दिलीप को गौ सेवा द्वारा कैसे संतान की प्राप्ति हुई

श्रीकृष्ण गाय चराते हुए कैसे रहते हैं?

श्रीकृष्ण और बलराम जी के चारों तरफ घंटी और घुंघरू की आवाज निकालती हुई गाय ही गाय हैं। गले में सोने की मालाएं, सींगों पर सोने का आवरण और मणि, पूंछों में नवरत्न का हार। वे सब बार बार उन दोनों के सुन्दर चेहरों को देखती हैं।

संतान प्राप्ति के उपाय क्या हैं?

पद्म पुराण पाताल खंड में संतान प्राप्ति के लिए तीन उपाय बताये गये हैं- भगवान विष्णु का प्रसाद, भगवान शंकर का प्रसाद और गौ माता का प्रसाद।

राजा दिलीप कौन थे?

राजा दिलीप इक्ष्वाकु वंश के प्रसिद्ध राजा थे। इनके पुत्र थे रघु।

राजा दिलीप की वंशावली क्या है?

ब्रह्मा-मरीचि-कश्यप-विवस्वान-वैवस्वत मनु-इक्ष्वाकु-विकुक्षि-शशाद-ककुत्सथ-अनेनस्-पृथुलाश्व-प्रसेनजित्-युवनाश्व-मान्धाता-पुरुकुत्स-त्रासदस्यु-अनरण्य-हर्यश्व-वसुमनस्-सुधन्वा-त्रय्यारुण-सत्यव्रत-हरिश्चन्द्र-रोहिताश्व-हारीत-चुञ्चु-सुदेव-भरुक-बाहुक-सगर-असमञ्जस्-अंशुमान-भगीरथ-श्रुत-सिन्धुद्वीप-अयुतायुस्-ऋतुपर्ण-सर्वकाम-सुदास्-मित्रसह-अश्मक-मूलक-दिलीप-रघु-अज-दशरथ-श्रीराम जी

राजा दिलीप की कहानी क्या है?

कामधेनु के श्राप की वजह से दिलीप को संतान नहीं हुई। महर्षि वसिष्ठ के उपदेश के अनुसार दिलीप ने कामधेनु की बेटी नन्दिनी की दिन रात सेवा की। एक बार एक शेर ने नन्दिनी को जगड लिया तो दिलीप ने अपने आप को नन्दिनी की जगह पर अर्पित किया। सेवा से खुश होकर नन्दिनी ने दिलीप को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।

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वारुण स्नान क्या है ?

सूर्यवंश के प्रसिद्ध राजा थे दिलीप। मगध की राजकुमारी सुदक्षिणा थी उनकी पत्नी। विवाह होकर बहुत समय के बीत जाने पर भी उनको संतान प्राप्ति नहीं हुई। बहुत दान-धर्म किया उन्होंने। यज्ञों का अनुष्ठान किया। ....


सूर्यवंश के प्रसिद्ध राजा थे दिलीप।

मगध की राजकुमारी सुदक्षिणा थी उनकी पत्नी।

विवाह होकर बहुत समय के बीत जाने पर भी उनको संतान प्राप्ति नहीं हुई।

बहुत दान-धर्म किया उन्होंने।

यज्ञों का अनुष्ठान किया।

राजा बहुत व्याकुल हो गए।

मैं ने क्या क्या उपाय नहीं किया देवताओं को और पितरों को खुश करने के लिए?

इतना दान-धर्म, सब कुछ किया।

जानबूझकर कोई गलती भी नहीं की।

फिर भी मुझे बच्चा क्यों नहीं हो रहा है?

उनके गुरु थे महर्षि वसिष्ठ।

इस दुख को लेकर राजा महर्षि के पास पहुंचे और उन्होंने महर्षि से कहा-

केन दोषेण मे पुत्रो जायते न तपोनिधे।
ध्यानेन दोषमालोक्य तं गुरो कथयाऽऽशु मे।

आप कृपया ध्यान करके अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर मुझे बताइए कि हमें पुत्र क्यों नहीं हो रहा है?

हमने इस के लिए सब कुछ कर लिया है।

वसिष्ठ महर्षि ने राजा दिलीप को बताया-

एक बार देवराज इंद्र से मिल कर तुम लौट रहे थे, अपनी पत्नी से समागम की तुम्हे जल्दी थी, और तुम ने रास्ते में कल्पवृक्ष के नीचे खडी कामधेनु के ऊपर ध्यान नहीं दिया।

गुस्से में कामधेनु ने तुम्हें शाप दे दिया कि जब तक तुम मेरी वंशजा गाय की सेवा नही करोगे, तुम्हें बच्चा नहीं होगा।

देखो गौ-शाप की शक्ति।

वसिष्ठ ने एक सुमंगला गाय को दिखाकर कहा-

यह नंदिनी है जो कामधेनु की पुत्री है, इसकी सेवा करो, मनोकामना पूरी हो जाएगी।

अगले दिन सुबह राज्ञी ने नंदिनी की अच्छे से पूजा की और राजा उसे चराने के लिए जंगल लेकर गए।

नंदिनी के पीछे छाया जैसे घूमते थे राजा।

जब भी नंदिनी कुछ खाती थी, उस के बाद राजा भी कुछ खाते थे।

और पानी पीती थी तो राजा भी उस के बाद पीते थे।

जब भी नंदिनी आराम करने बैठती थी तो राजा भी बैठ जाते थे।

अपने हाथों से उसे खुजलाते थे।

आश्रम लौटते वक्त अपने खुरों से उठने वाले धूल से धीरे धीरे राजा के पाप निकालते चली गई।

गाय के खुरों से उठने वाले धूल बडे पवित्र होते हैं ।

वे आदमी को क्या सारे प्रपंच को पवित्र कर देते हैं।

इसलिए सायं संध्या को गोधूली मुहूर्त कहते हैं।

जिस समय घर लौटती हुई गाय धूल से अंतरिक्ष को शुद्ध कर देती है उस समय कोई भी सत्कार्य बिना पंचांग देखकर कर सकते हैं।

आश्रम लौटने के बाद राजा ने फिर नंदिनी की पूजा की।

इक्कीस दिन बीत गए।

नंदिनी की राजा हर रोज ऐसी सेवा करते रहे।

अगले दिन घूमते घूमते नंदिनी एक गुफा के अंदर चली गई।

एक शेर ने उसको पकड लिया।

नंदिनी की चीक सुनकर राजा पहुंचे और शेर को मारने अपने तूणीर से बाण निकालने लगे तो उनका शरीर स्तब्ध हो गया।

वे हिल नहीं पाए।

शेर मनुष्य की आवाज में बोलने लगा: राजन मैं आप को पहचानता हूं।

आप हैं सूर्यवंशी नरेश दिलीप और आप शायद मुझे भी पहचानते होंगे।

मैं हूं भगवान शंकर के भूतगण का सदस्य, कुम्भोदर।

इस जगह पर यह जो देवदारु का पेड आप को दिखाई दे रहा है यह माता पार्वती के लिए बहुत प्यारा है।

और इसे देवी अपने बच्चे जैसे पालती है।

एक बार एक हाथी ने अपने पेट खुजलाते खुजलाते इस का छाल निकाल दिया था और माता ने इस की रक्षा के लिए मुझे यहां लगाया है।

माता ने अनुमति दी है कि जो जानवर यहां आएगा वह मेरा खाना बन जाएगा।

और आप भी मुझे किसी आम शेर जैसे मार नहीं सकते क्योंकि इस जगह पर एक माया शक्ति है और मेरा कोई कुछ नही कर सकता।

राजा बोले- यह गाय तो मेरी रक्षा में है।

संतान प्राप्ति के लिए मेरे गुरुजी के आदेशानुसार मैं इसकी सेवा कर रहा हूं।

हां चाहो तो तुम मुझे खा लो; यह कहकर राजा शेर के सामने आंख बंद करके लेट गए।

शेर का दंष्ट्र और नाखुन का इंतजार करता हुआ राजा के ऊपर, फूल आकर गिरे।

देवता लोग आकाश से पुष्प-वृष्टि कर रहे थे।

आंखें खोलकर देखा तो शेर गायब।

सामने खडी थी नंदिनी।

नंदिनी ने कहा- मैं तो आप की परीक्षा कर रही थी।

आप की श्रद्धा और प्रतिबद्धता से मैं प्रसन्न हो गई हूं।

बोलिए क्या वर दूं आप को।

राजा बोले:-

न गुप्तं देहिनामन्तर्वर्तिवृत्तं भवादृशाम्।
अतो जननि जानासि वाञ्छितं मम देहि तत्।

आदमी के मन में क्या है यह आप जैसों से छुपा हुआ कभी नहीं रहता।

मुझे क्या चाहिए आप को पता है; वह मुझे दीजिए।

इस के सिवा मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।

पत्तों के पुट में मेरा दूध लेकर पी लो और अपनी पत्नी को भी पिलाओ।

तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी।

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