इस प्रवचन से जानिए- १. गौ माता के कुछ प्रसिद्ध श्लोकों का अर्थ २. कैसे देवी पार्वती एक बार गाय बन गई

गौ माता की प्रार्थना क्या है?

ऋद्धिदां वृद्धिदां चैव मुक्तिदां सर्वकामदाम्। लक्ष्मीस्वरूपां परमां राधां सहचरीं पराम्। गवामधिष्ठातृदेवीं गवामाद्यां गवां प्रसूम्। पवित्ररूपां पूज्यां च भक्तानां सर्वकामदाम्। यया पूतं सर्वविश्वं तां देवीं सुरभीं भजे।

पृथु राजा की कहानी

एक सम्राट था वेन। बडा अधर्मी और चरित्रहीन। महर्षियों ने उसे शाप देकर मार दिया। उसके बाद अराजकता न फैलें इसके लिए महर्षियों ने वेन के शरीर का मंथन करके राजा पृथु को उत्पन्न किया। तब तक अत्याचार से परेशान भूमि देवी ने सारे जीव जालों को अपने अंदर खींच लिया था। उन्हें वापस करने के लिए राजा ने कहा तो भूमि देवी नही मानी। राजा ने अपना धनुष उठाया तो भूमि देवी एक गाय बनकर भाग गयी। राजा ने तीनों लोकों में उसका पीछा किया। गौ को पता चला कि यह तो मेरा पीछा छोडने वाला नहीं है। गौ ने राजा को बताया कि जो कुछ भी मेरे अंदर हैं आप मेरा दोहन करके इन्हें बाहर लायें। आज जो कुछ भी धरती पर हैं वे सब इस दोहन के द्वारा ही प्राप्त हुए।

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गौ सूक्त किस ग्रंथ में है?

उस के बाद सब मिलकर वसिष्ठ के पास पहुंचे। वसिष्ठ जी बोले- यो ददाति निखिलं मनोरथं कीर्तितेयं मनसा विदूरतः। श्रद्धया निकट एव सेविता किं पुनः सुरतरङ्गिणीवसा। यह नंदिनी जो है, दूर से मन में स्मरण करने से भी सारी ....


उस के बाद सब मिलकर वसिष्ठ के पास पहुंचे।

वसिष्ठ जी बोले-

यो ददाति निखिलं मनोरथं कीर्तितेयं मनसा विदूरतः।
श्रद्धया निकट एव सेविता किं पुनः सुरतरङ्गिणीवसा।

यह नंदिनी जो है, दूर से मन में स्मरण करने से भी सारी इच्छाएं पूरी करने वाली है।

और आप ने तो नंदिनी की पास रहकर सेवा की है।

आप की कामना पूरी हो रही है, इस में कोई आश्चर्य नही है।

दिलीप-सुदक्षिणा दंपती को गौ माता के आशीर्वाद से ऐसा बेटा पैदा हुआ जिस ने अपने नाम से पूरे सूर्यवंश का नाम रोशन कर दिया- रघु।

सूर्यवंश रघुवंश के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध हो गया।

रघु, राजा दशरथ के पितामह थे।

गौ माता से प्रार्थना की जाती है:

सर्वकामदुघे देवि सर्वान्तकनिवारिणि।
आरोग्यं सन्ततिं दीर्घां देहि नन्दिनि मे सदा।

गौ माता सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती है।

मृत्यु जैसे सारे भय को दूर कर देती है।

हमारा वंश अटूट रहें।

हमें दीर्घायु वाले संतान प्राप्त हो जाएं।

पूजिताश्च वसिष्ठेन विश्वामित्रेण धीमता।
कपिले हर मे पापं यन्मया पूर्वसञ्चितम्।

महर्षि वसिष्ठ और विश्वमित्र ने आप की पूजा की है।

मेरे पापों से मुझे मुक्ति दीजिए।

गावो ममाग्रतः सन्तु गावो मे सन्तु पृष्ठतः।
नाके मामुपतिष्ठन्तु हेमशृङ्गी पयोमुखः।

गाय मेरे आगे रहें।

गाय मेरे पीछे रहें।

स्वर्ण सींग वाली गौ माता मुझे स्वर्ग मे जगह दिला दें।

सुरभ्यः सौरभेयाश्च सरितः सागरा यथा।
सर्वदेवमये देवी सुभद्रे भक्तवत्सले।

जलाशयों के बीच जैसे समंदर है वैसे ही सुगंध वालों के बीच आप हैं।

आप के शरीर में ही सारे देवता हैं और आप को अपने भक्तों के ऊपर वात्सल्य है।

गाय को रोज का चारा खिलाने के लिए श्लोक है:

सौरभेयः सर्वहिताः पवित्राः पापनाशनाः।
प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः।

सुगंध वाली, सब का भला करने वाली, पवित्र, और पापों का नाश कर देने वाली गाय जो तीनों लोकों की मातृस्वरूपा है, वें इस ग्रास को स्वीकार करें।

गवां घासप्रदानेन सर्वपापैः प्रमुच्यते।

कहा गया है उसी पुराण के उपरि विभाग का छब्बीसवां अध्याय में; गाय को घास खिलाने से सारें पापों से छुटकारा मिलता है।

गोदो ब्रध्नस्य विष्टपम्; कूर्म पुराण- गो दान करने वाला ब्रह्म लोक को जाता है।

एक बार माता पार्वती ने खुद गौ माता का रूप धारण किया और भोलेनाथ बन गए एक बूढा।

गाय को चराते हुए वे महर्षि भृगु के आश्रम पहुंचे।

महादेव ने भृगु को बोला: मैं दो दिन के लिए दूर जा रहा हूं।

कृपया मेरी इस गाय की रक्षा करें।

आश्रम वासियों ने गाय को अंदर ले लिया।

बछडा भी था साथ में और भोलेनाथ निकल पडे।

थोडी देर बाद वे खुद वाघ का रूप स्वीकार करके वहां पहुंचे और गौ को डराने लगे।

डर से गौ और बछडा कूद कूद कर दौडे तो उन के खुरों का निशान शिला के ऊपर पड गया।

व्यास जी कहते हैं कि वह निशान आज भी दिखता है।

पुराण के अनुसार यह स्थान है ढुंढागिरि जो नर्मदा जी के तट पर है; पता नही यह कहां पर है।

आधुनिकता की चूहादौड में हम लोगों ने यह सब कुछ गवा दिया है।

पश्चिम के लोगों ने पुराण और इतिहास का नाम रखा है माइथोलॉजी, मिथ का मतलब काल्पनिक, कल्पित जो असल में नही है।

और हम लोगों ने आखें बंद करके इस नाम को स्वीकार कर लिया।

हम लोगों ने स्वीकार कर लिया कि शायद ये सब कथाएं ही हैं।

ऐसा हो सकता है क्या?

भगवान आदमी बनता है उस के बाद वाघ बनता है, कल्पना होगी किसी कथाकार की।

ऐसे सोचने लगे हैं हम लोग भी।

संपूर्ण अथर्व वेद दैवी उपचारों के ऊपर है।

सर्दी-जुकाम से लेकर कैंसर से ऐड्स तक का उपचार बताया है मंत्रों में।

और हम ने मान लिया कि यह सब अंधविश्वास हैं।

चूषण है, वह भी विना किसी अनुसंधान के।

अंग्रेजी में नहीं लिखा है तो सही कैसे हो सकता है?

अंग्रेजों का मोहर नही है तो सही कैसे हो सकता है?

आज भी कानून बनाने लगे हैं हम लोग इन सब की मनाही के लिए, अंधविश्वास कहकर।

जो गलत है उसके खिलाफ कानून बनना चाहिए।

कम से कम जानकार लोगों से बात करो।

उनकी राय लो।

थोडी सी खोज करो।

ये सब के लिए वैज्ञानिक प्रक्रिया है हमारे पास।

उसका इस्तेमाल करो।

ऐसा नहीं है कि अंग्रेजों ने कह दिया कि अंधविश्वास है तो अंधविश्वास है।

उन का कुछ और मुद्दा हो सकता है।

आंख बंद करके इन सब का नकार मत करो।

हमारा कर्तव्य बनता है कि थोडा सा प्रयत्न करें, ढूंढ निकालें ऐसे पवित्र स्थानों को।

उनके गौरव को फिर से प्रतिष्ठा दें।

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