भक्ति योग का लक्ष्य भगवान श्रीकृष्ण ही है

भक्ति योग का लक्ष्य भगवान श्रीकृष्ण है, कोई अन्य देवता या अवतार नहीं, जानिए क्यों

भागवत के मार्ग में ज्ञान और वैराग्य कैसे विकसित होते हैं?

भागवत के मार्ग में साधक को केवल भगवान में रुचि के साथ उनकी महिमाओं का श्रवण यही करना है। भक्ति अपने आप विकसित होगी। भक्ति का विकास होने पर ज्ञान और वैराग्य अपने आप आ जाएंगे।

भक्ति-योग का लक्ष्य क्या है?

भक्ति-योग में लक्ष्य भगवान श्रीकृष्ण के साथ मिलन है, उनमें विलय है। कोई अन्य देवता नहीं, यहां तक कि भगवान के अन्य अवतार भी नहीं क्योंकि केवल कृष्ण ही सभी प्रकार से पूर्ण हैं।

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क्या भक्ति योग गीता के अन्तर्गत है?

हम यह देखने जा रहे हैं कि कैसे ज्ञान प्राप्त किया जाएं, कैसे वैराग्य विकसित किया जाएं और भक्ति-योग के माध्यम से भगवान तक कैसे पहुंच सकते हैं। श्रीमद्भागवत के पहले स्कंध के दूसरे अध्याय का सातवाँ श्लोक। वासुदेवे भगवति भ....

हम यह देखने जा रहे हैं कि कैसे ज्ञान प्राप्त किया जाएं, कैसे वैराग्य विकसित किया जाएं और भक्ति-योग के माध्यम से भगवान तक कैसे पहुंच सकते हैं।

श्रीमद्भागवत के पहले स्कंध के दूसरे अध्याय का सातवाँ श्लोक।

वासुदेवे भगवति भक्तियोगः प्रयोजितः।
जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानञ्च यदहैतुकम्॥


आध्यात्मिक प्रगति के लिए ज्ञान और वैराग्य, सांसारिक मामलों के प्रति मोह का अभाव आवश्यक है।
लेकिन ये दोनों कैसे होगा?
आपको किस प्रकार का प्रयास करना होगा ज्ञान प्राप्त करने?
क्या शास्त्रों को पढने से ज्ञान मिलेगा?
और वैराग्य कैसे आएगा?
आत्म-संयम, आत्म-नियंत्रण के अभ्यास से वैराग्य विकसित होगा?
नहीं।
भागवत में बताए गए भक्ति-योग के मार्ग से ये दोनों स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं
बिना किसी प्रयास के।
जैसा कि हम पहले देख चुके हैं, भागवत के भक्ति मार्ग के तीन चरण हैं।
रुचि होना -श्रवण -भगवान के लिए असीम प्रेम का विकसित होना।
यह योग है क्योंकि यह शाश्वत है।
एक बार भगवान में लय हो गया तो वह शाश्वत है।
दिन भर आप इसका प्रयास ही करते रहेंगे।
आपके जीवन की प्राथमिकता, जिस उद्देश्य के लिए आप जीते हैं, वह यही बन जाता है।
कुछ लोग पैसा कमाने के लिए जीते हैं, एक अच्छा घर हो, एक अच्छा परिवार हो।
वे इसी के लिए जीते हैं।
उनका जीवन इन सब चीजों में ही परिमित रहता है।
भागवत के मार्ग में भी आप ये सब कर सकते हैं।
लेकिन आपका जीवन इन्हीं तक सीमित नहीं रहेगा।
यह वह नहीं है जिसके लिए आप जी रहे हैं।
जब आप एक अलग रास्ते पर चलेंगे तभी आप एक अलग लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे।
आम रास्ते पर चलने वालों को आम लक्ष्य की प्राप्ति ही हो सकती है।
जो उन गलियों पर चलते हैं जिन पर आम लोग चलते हैं, वे वहीं पहुंचते हैं जहां आम लोग पहुंचते हैं।
अगर कोई उस एकाकी रास्ते को अपनाता है जो एवरेस्ट पर्वत की ओर जाता है, वह विजेता बन जाता है, दूसरों से अलग होता है।
भागवत मार्ग में आपको जीवन के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा।
आपको भगवान के लिए जीना शुरू करना होगा।
आपको भगवत प्राप्ति के लिए जीना शुरू करना होगा।
भगवान की बातों में अपनी रुचि बढाने के लिए जो कुछ भी करना है, वे सब आपको करना होगा।
फिर आप यह सुनिश्चित करें कि उसमें आपकी रुचि दिन-ब-दिन बढ़ती जाए।
भगवान की महिमा के बारे में सुनने का एक अवसर भी न चूकें।

ज्ञान और वैराग्य अपने आप आ जाएगा।
चिंता मत करो।
इसके लिए आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है।

भगवान का वासुदेव नाम इस श्लोक में लिया गया है।
एक कारण है।
भगवान के सारे छः गुण- ज्ञान, वैराग्य, धर्म, ऐश्वर्य, यश और श्री, ये सारे छः गुण चतुर्व्यूह में वासुदेव में ही विद्यमान हैं।
विशेष रूप से वासुदेव भगवान क्यों?
चतुर्व्यूह में, यदि आप संकर्षण को लेंगे तो आपको ज्ञान और बल दिखाई देंगे।
एक एक अवतार में, कुछ गुण प्रमुख होंगे।
जैसे हयग्रीव में, ज्ञान।
नरसिंह में, शक्ति।
लेकिन वासुदेव में, वसिदेव के पुत्र वासुदेव में, श्रीकृष्ण में सभी छः गुण पूर्ण रूप से होते हैं।
वासुदेवे भगवति इसका आशय यही है।
भक्ति योग का लक्ष्य भगवान श्रीकृष्ण ही है, कोई अन्य अवतार नहीं।
यह है श्रीमद्भागवत का मार्ग।

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