आपका धार्मिक अनुष्ठान फल क्यों नहीं दे रहा है?

आप कई धार्मिक अनुष्ठान करते होंगे जैसे मंदिरों में जाना, स्तोत्र का पाठ करना, पूजा करना, दान देना। लेकिन आपको इन सबसे लाभ क्यों नहीं मिल रहा है? जानिए ...

आप कई धार्मिक अनुष्ठान करते होंगे जैसे मंदिरों में जाना, स्तोत्र का पाठ करना, पूजा करना, दान देना। लेकिन आपको इन सबसे लाभ क्यों नहीं मिल रहा है? वे सभी अच्छे, निर्धारित मार्ग हैं। लेकिन फिर भी फल क्यों नहीं मिलता? कु....

आप कई धार्मिक अनुष्ठान करते होंगे जैसे मंदिरों में जाना, स्तोत्र का पाठ करना, पूजा करना, दान देना।
लेकिन आपको इन सबसे लाभ क्यों नहीं मिल रहा है?

वे सभी अच्छे, निर्धारित मार्ग हैं।
लेकिन फिर भी फल क्यों नहीं मिलता?

कुछ समय बाद, आपको ऐसा क्यों लगता है कि कितना समय बरबाद किया इन सब चीजों में?

इसका स्पष्ट उत्तर भागवत में है।
प्रथम स्कन्ध, दूसरा अध्याय, श्लोक संख्या ८

धर्मः स्वनुष्ठितः पुंसां विष्वक्सेनकथासु यः।
नोत्पादयेद्यति रतिं श्रम एव हि केवलम्॥

अनुष्ठान, धार्मिक अभ्यास जब तक कि वे आप में भगवान की महानता के बारे में जानने के लिए उत्सुकता उत्पन्न नहीं करते हैं, वे केवल समय की बर्बादी हैं, प्रयास की बर्बादी हैं।

कर्मकांड और अभ्यास केवल साधन हैं।
लक्ष्य भगवान में रुचि विकसित करना है।

यह बात हमेशा याद रखें।
ऐसा नहीं है कि जिनको भक्ति हैं वे पूजा-पाठ करते हैं।

आप पूजा करते हैं, जाप करते हैं, मंदिरों में जाते हैं भक्ति को विकसित करने।

हो सकता है कि आप इसे न समझ सकें, क्योंकि जो लोग धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, उन्होंने कभी भक्ति का स्वाद नहीं चखा होगा।

वे धार्मिक अनुष्ठान परंपरा, आदत, भय, टाइम पास, दिखावा, या कुछ पाने के लिए करते हैं - एक अच्छी नौकरी, शादी, घर, बच्चे।

कारण चाहे जो भी हो, जब तक कि धार्मिक अनुष्ठान अंततः भगवान की महिमा को जानने की उत्सुकता न ले जाएं वह समय की बर्बादी है।

यह बिना ईंधन वाली कार चलाने जैसा है।

स्टीयरिंग घुमाते रहेंगे, गियर बदलते रहेंगे, एक्सीलरेटर दबाते रहेंगे लेकिन इंजन बंद पडा है।

इसे घंटों तक करो, कार एक इंच भी आगे नहीं बढेगी।

तो, यह एक स्पष्ट परीक्षा है।

आप भले ही पच्चीस साल, तीस साल से धार्मिक करते होंगे, लेकिन अगर आप में भगवान के बारे में जानने, उनकी महानता के बारे में जानने की उत्सुकता विकसित नहीं हुई है, तो इसका मतलब है कि आपका पच्चीस साल तीस साल व्यर्थ चले गये।

भागवत यही कहता है।

अगले दो श्लोकों के माध्यम से भागवत एक बात बहुत स्पष्ट कर देता है।

भागवत आपको धन या भोग नहीं देगा।
देखिए जब नैमिषारण्य में ऋषि मुनियों ने सूत जी से कहा कि हमें भोग और मोक्ष दोनों ही मिलने जैसा कुछ बताइए तो उन्होंने देवी भागवत सुनाया, श्रीमद भागवत नहीं।

भागवत शरीर के लिए नहीं है।
भागवत भोग के लिए नहीं है।
भागवत भौतिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं है।

अगर आप यह चाहते हैं तो सुनना बंद कर दीजिए।

क्योंकि भागवत इन्हें बहुत ही निम्न स्तर, निम्न लक्ष्य मानते हैं।

धर्मस्य ह्यपवर्गस्य नार्थोऽर्थायोपकल्पते।
नार्थस्य धर्मैकान्तस्य कामो लाभाय हि स्मृतः॥
कामस्य नेन्द्रियप्रीतिर्लाभो जीवेत यावता।
जीवस्य तत्वजिज्ञासा नाऽर्थो यश्चेह कर्मभिः॥

यह हम पहले भी देख चुके हैं।
क्या आत्म-संयम, सत्य का आचरण , यज्ञ और पूजा जैसे धर्म का पालन करने से धन की प्राप्ति हो सकती है?
हो सकती है।
इसके लिए वेदों में विशेष मंत्र और अनुष्ठान भी हैं।
तो अवश्य प्राप्त हो सकती है।
चूंकि यह वेदों का हिस्सा है, इसलिए यह धर्म भी है।
यह अधर्म नहीं है।

लेकिन भागवत कहता है, उनकी उपेक्षा करो।
अंतिम लक्ष्य के लिए जाओ।
तत्त्व जिज्ञासा को अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर रखो।
यह जिज्ञासा ही भगवान में रुचि है, भगवान के बारे में जानने की रुचि है।
भागवत धर्म का पहला चरण।
उसके बाद श्रवण, उसके बाद भक्ति का विकास।
तत्त्व जिज्ञासा का अर्थ हम विस्तार से बाद में बाद में देखेंगे।

उस तरह के धर्म के लिए मत जाओ जो आपके चारों ओर अधिक से अधिक धन और सुख पैदा करेगा।
ये संपत्ति नहीं हैं, ये देनदारियां हैं।

ऐसे धर्म की उपेक्षा करो।
ऐसे धर्म के लिए जाओ जो आपको एक स्वतंत्र पक्षी की तरह जब चाहें उडने देगा।

यदि धन है तो उसका उपयोग धर्म का आचरण में ही करें।
लोगों को खाना खिलाओ, पेड़ लगाओ, जिस गांव में पानी नहीं है वहां कुआं खोदो।

लेकिन इसे उस तर्फ मत लेकर जाओ।
धन को धर्म से जोड़ो।
धन को काम या सुख से न जोडो।

यदि आप सोचते हैं कि धन आपके शरीर को सुख दे रहा है, तो यह गलत है।
यदि धन सुख दे रहा है तो ऐसा क्यों है कि एक धनी बीमार बूढे को अपने शरीर से सुख नहीं मिलता है?
धन होने के बावजूद उसका शरीर उसे दर्द और तकलीफ ही देता है न?
धन और सुख का पारस्परिक संबन्ध नहीं है।

हां धन कभी-कभी आपको ऐसी वस्तुएँ प्राप्त कर सकता है जो आनंद को उत्तेजित कर सकती हैं।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि आपको उससे सुख मिलें।

भागवत कहता है, यह सब गड़बड़ है।

इन सब से बाहर निकलो।

ये आपको कहीं नहीं ले जाने वाले हैं।

परम लक्ष्य को लक्षित करो, जो है मोक्ष, भगवान में लय।

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