किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या
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प्रातःकाल और मध्याह्न-संध्याके समय पूर्वकी ओर तथा सायंकालकी संध्याके समय पश्चिमकी ओर मुख करके शुद्ध आसनपर बैठ तिलक करे ।
नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर शरीरपर जल छिड़के।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
दाहिने हाथमें जल लेकर यह संकल्प पढ़े; संवत्सर, मास, तिथि, वार, गोत्र तथा अपना नाम उच्चारण करे । ब्राह्मण हो तो 'शर्मा' क्षत्रिय हो तो 'वर्मा' और वैश्य हो तो नामके आगे 'गुप्त' शब्द जोड़कर बोले । ॐ तत्सदद्यैतस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्नोऽमुकशर्माहं प्रातःसंध्योपासनं कर्म करिष्ये ॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़े।
पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसने विनियोगः ॥
नीचे लिखे मन्त्रको पढ़कर आसनपर जलके छींटे दे।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
फिर बायें हाथमें बहुत-सी कुशा लेकर और दाहिने हाथमें तीन कुशा लेकर पवित्री धारण करे, इसके बाद 'ॐ' के साथ गायत्री मन्त्र पढ़कर चोटी बाँध ले और ईशान दिशाकी ओर मुख करके आचमन करे । नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर पुनः आचमन करे ।
ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत । ततो रात्र्यजायत । ततः समुद्रो अर्णवः । समुद्रादर्णवादधिसंवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी । सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ॥
तदनन्तर 'ॐ' के साथ गायत्री मन्त्र पढ़कर रक्षाके लिये अपने चारों ओर जल छिड़के।
नीचे लिखे एक-एक विनियोगको पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ता जाय अर्थात् चारों विनियोगोंके लिये चार बार जल छोड़े।
ॐकारस्य ब्रह्म ऋषिर्गायत्री छन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ॥ सप्तव्याहृतीनां विश्वामित्रजमदग्निभरद्वाज- गौतमात्रिवसिष्ठकश्यपा ऋषयो गायत्र्युष्णिगनुष्टब्बृहतीपङ्कित्रिष्टब्जगत्य- श्छन्दांस्यग्निवाय्वादित्यबृहस्पतिवरुणेन्द्रविश्वेदेवा अनादिष्टप्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः ॥ गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवताग्निर्मुखमुपनयने प्राणायामे विनियोगः ॥ शिरसः प्रजापतिर्ऋषिस्त्रिपदा गायत्री छन्दो ब्रह्माग्निवायसूर्या
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