My God........after listening to your few of the videos my concepts are so clear. Thanks a lot for taking out your precious time and giving us the valuable information. But people are so busy in watching other nonsense videos it's sad...I pray to God that he gives you long and healthy life so that you keep showing us the light in this worldly darkness. Thanks a lot once again.
अद्भुत व्याख्यान! अद्भुत स्वर! प्रणाम स्वीकार करें
हमने देखा कि शिवलिंग पूजन से मोक्ष की प्राप्ति कैसे होती है। शिवलिंग शिव तत्त्व भी है शक्ति तत्त्व भी है। शिवलिंग की पिंडी शिव है, पीठ पार्वती है। शिव नाद हैं पार्वती बिन्दु है। आगम शास्त्र के अनुसार सृजन के समय नाद से ब....
हमने देखा कि शिवलिंग पूजन से मोक्ष की प्राप्ति कैसे होती है।
शिवलिंग शिव तत्त्व भी है शक्ति तत्त्व भी है।
शिवलिंग की पिंडी शिव है, पीठ पार्वती है।
शिव नाद हैं पार्वती बिन्दु है।
आगम शास्त्र के अनुसार सृजन के समय नाद से बिन्दु और बिन्दु से जगत की उत्पत्ति होती है।
प्रलय के समय ठीक इसका विपरीत।
जगत का बिन्दु में लय और बिन्दु का नाद में लय।
ये दोनों ही शिवलिंग में सन्निहित होने के कारण शिवलिंग की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसे समझने की एक और दिलचस्प तरीका है।
हम ज्यादा करके गर्भ को स्त्रियों के साथ ही संगत करते हैं।
पर देखिए गर्भ शब्द को उल्टा लिखेंगे तो भर्ग होता है।
कौन है भर्ग?
भोलेनाथ।
भगवान गर्भवान हैं।
पुरुष होकर भी गर्भवान हैं।
भगवान के कोख से प्रकृति जन्म लेती है।
प्रकृति दो प्रकार की हैं।
अव्यक्त प्रकृति और व्यक्त प्रकृति।
जैसे हम विश्व का अनुभव करते हैं - पेड, पौधे, जानवर, पहाड, नदियां, लोग, घर, इमारतें - यह व्यक्त प्रकृति है।
इसकी दूसरी अवस्था है अव्यक्त प्रकृति।
एक कंप्यूटर को लीजिए।
जब वह चल रहा है, उस समय उसके स्क्रीन पर ग्राफिक्स है, गाना बजता है, प्रिंटर चलता है, इंटर्नेट चलता है; यह कंप्यूटर की व्यक्त अवस्था है।
जब कंप्यूटर बिजली से विच्छेदित है, वह बन्द है, तब उस में ये सब नहीं होते हैं।
सिर्फ होने की क्षमता ही रह जाती है।
बिजली से संगत होने पर ये सारा काम हो सकता है, ऐसी क्षमता - यह अव्यक्त प्रकृति की अवस्था है।
तो भगवान के गर्भ से अव्यक्त प्रकृति जन्म लेती है।
अव्यक्त प्रकृति के गर्भ से व्यक्त प्रकृति जन्म लेती है।
प्रकृति दो बार जन्म लेती है।
पहले अव्यक्त के रूप में और उसके बाद व्यक्त के रूप में।
जीव को जीव क्यों कहते हैं?
जीवात्मा को जीवात्मा क्यों कहते हैं?
जीव शब्द का अर्थ क्या है?
जीर्यते जन्मकालाद्यत् तस्माज्जीव इति स्मृतः।
जीव शब्द की उत्पत्ति जृष धातु से हुई है - जृष वयोहानौ।
जन्म लेते ही जिसका मरण होना शुरू होता है वह है जीव।
जब एक बच्चा जन्म लेता है तो हमें लगता है कि अब यह बडा होगा, जीएगा, बाद में कभी इसका देहांत होगा।
ज्यादा करके देहांत के बारे में हम सोचेंगे ही नहीं।
पर जन्म लेते ही एक count down clock शुरू हो जाता है।
पहले से ही निश्चित है कि इतने दिनों बाद देहांत होगा।
प्रतिदिन उस क्लाक मे एक अंक कम होता जाता है।
जब जीरो पर पहुंचता है तो जीवन समाप्त।
ऐसे आयु प्रतिदिन जीर्ण होने के कारण ही उसे जीव कहते हैं।
जिन्दा है का अर्थ है मरता जा रहा है।
जीव में एक और बात है।
वह जन्म से लेकर प्रतिदिन अधिक से अधिक बांधा जाता है।
उसकी मजबूरियां बढती जाती हैं।
उसकी आसक्तियां बढती जाती हैं।
वह परतंत्र अधिक से अधिक परतंत्र होता जाता है।
जन्मपाशनिवृत्यर्थं जन्मलिङ्गं प्रपूजयेत्।
इसे समझकर शिवलिंग की पूजा करो, दोनों से मुक्त हो जाओगे।
पुनर्जन्म से भी और बन्धन से भी।
क्यों कि भगवान भर्ग हैं, गर्भवान हैं।
जन्म देना, न देना उनके हाथ में है।
बांधना, नहीं बांधना उनके हाथ में है।
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